बता रहा हूं आपको, यह बात है 2002 की. लखनऊ जेल से कुछ कैदी फरार हो गए थे. राज्य सरकार ने अलग-अलग जिलों में तैनात तीन अधिकारियों को लखनऊ जेल में तैनात किया. उनमें से एक मैं भी था. मैं सीतापुर जेल से आया था. " 69 वर्षीय एस.के. अवस्थी यादों के गलियारे में जा पहुंचे हैं. उनकी आंखें भी उस मंजर से जुड़ गई हैं. लखनऊ में जहां कभी पुरानी जेल हुआ करती थी, वह जगह अब ईको गार्डन में तब्दील हो गई है. गार्डन की बगल में कैलाशपुरी इलाके के भुइयनदेवी मंदिर के ठीक सामने जो तिमंजिला मकान है, उसी में रहने वाले अवस्थी यह किस्सा सुना रहे हैं. नौ साल पहले वे जेलर के पद से रिटायर हुए. जेल महकमे में 37 साल की नौकरी के दौरान उनकी छवि दुर्दात अपराधियों से पंगा लेने की रही और फिर वे पहुंचते हैं मुख्तार अंसारी परः “ अप्रैल, 2003 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का सत्र शुरू हुआ. मऊ सदर से निर्दलीय विधायक मुख्तार अंसारी दिल्ली जेल में बंद था. सत्र में शामिल होने के लिए वह लखनऊ जेल शिफ्ट हुआ था. 23 अप्रैल, 2003 का वाकया बताता हूं आपको कुछ लोग सुबह साढ़े दस बजे मुख्तार से मिलने लखनऊ जेल आ पहुंचे. मैं जेल में अपने दफ्तर में बैठा था. मुख्तार वहीं आ गया और मुलाकातियों को बिना तलाशी भीतर करने को कहा." अवस्थी बाहर निकले तो देखा कि मुख्तार के मुलाकाती जेल के मुख्य गेट के भीतर थे. उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को सभी की सघन तलाशी लेने का आदेश दिया. अवस्थी के ही शब्दों में, “मुख्तार तो बौखला गया. अपने एक मुलाकाती से रिवॉल्वर लेकर मेरे ऊपर तान दी और गरियाते हुए बोला, 'तुम जेल से बाहर आओ जरा, तुम्हारा काम तमाम करता हूं." मौके पर मौजूद जेलकर्मियों ने बीच-बचाव कर मुख्तार को उसकी बैरक में वापस भेजा. अवस्थी ने दफ्तर पहुंचकर ऊपर के अफसरों को घटना के बारे में बताया. “मैं मुख्तार के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने पर अड़ा था जबकि कई अधिकारी ऐसा न करने का दबाव डाल रहे थे," लंबी सांसें छोड़ते हुए अवस्थी बताते हैं. आखिरकार अगले दिन वे लखनऊ के आलमबाग थाने में मुख्तार के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने में कामयाब रहे. दो महीने बाद जून, 2003 में मजिस्ट्रेट ने भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 353, 504, 506 के तहत अपराध के लिए मुख्तार पर आरोप तय किए.
この記事は India Today Hindi の November 23, 2022 版に掲載されています。
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अब आई मगरमच्छों की बारी
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नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"