कायाकल्प के कारक
India Today Hindi|January 04, 2023
भारत का कंगाली से खुशहाली का सफर बहुत उतार-चढ़ाव भरा रहा है. इन बेहद अहम फैसलों ने इसे गर्त और अतीत की उथल-पुथल के बीच रास्ता दिखाया और आधुनिक वैश्विक शक्ति केंद्र बनने में मदद की
शंकर अय्यर
कायाकल्प के कारक

हरित क्रांति

जवाहरलाल नेहरू ने 1952 में कहा था "और सब इंतजार कर सकते है, कृषि नहीं." नीतिगत कमियों और बढ़ती आबादी से तंगी और बदतर हो गई, जिसने भारत को हैरी ट्रूमैन के इंडिया इमरजेंसी फूड ऐक्ट और पीएल480 की सहायता को मोहताज बना दिया. नेहरू ने 1963 में संसद में कहा, "हम दूसरे देशों की खैरातों पर जिंदा नहीं रह सकते." पता यह चला कि 1966 में जब भारत लगातार दो साल अकाल के जंजाल में फंसा था, लिंडन बी. जॉनसन की सरकार ने आपूर्तियों पर घेरा कस दिया और भारत को 'शिप टू माउथ' अर्थव्यवस्था करार दिया. लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने सी. सुब्रह्मण्यम और एम. एस. स्वामीनाथन को इतना शक्ति संपन्न बनाया कि वे संकर बीज (हाइब्रिड) लाकर पैदावार बढ़ाने और हरित क्रांति का ताना-बाना बुन सकें. 2022 में 31.6 करोड़ टन की उपज के साथ भारत दुनिया के शीर्ष तीन खाद्य उत्पादकों में है.

बैंकों का राष्ट्रीयकरण

भारत को 1947 में पता था कि उसके पास अपनी महत्वाकांक्षाओं पर धन लगाने के लिए संसाधन नहीं हैं. उसकी बचत दर बमुश्किल 11 फीसद थी. राजनैतिक वर्ग को यकीन था कि कारोबारी घरानों ने बचत पर कब्जा जमा रखा है. सुभद्रा जोशी ने पहले-पहल राष्ट्रीयकरण का विचार सामने रखा. अर्थशास्त्र और राजनीति के मिलन स्थल पर आने के कारण इसे समर्थन मिला, क्योंकि भारत को निवेश पूंजी की और इंदिरा गांधी को कांग्रेस में सिंडीकेट से सत्ता छीनने के लिए राजनैतिक पूंजी की जरूरत थी. 1969 में 14 बैंकों की मिल्कियत सरकार को सौंप दी गई, जिससे 50,000 शाखाओं और एक साथ इतने सारे धन के अलावा एसएलआर सरीखे तंत्र के माध्यम से धन कोषों तक पहुंच हासिल हो पाई. 2022 में वह नीति भले बदल रही हो, पर विकास में इसकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. इस तरह देश को वित्तीय समावेशन देखने में 40 साल का समय लगा.

श्वेत क्रांति

この記事は India Today Hindi の January 04, 2023 版に掲載されています。

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