24 जनवरी को खुद को अरामबाई तेंगगोल (यह शब्द भाले लेकर जंग लड़ने वाली पारंपरिक घुड़सवार सेना के लिए इस्तेमाल होता है) कहने वाले एक मैतेई सतर्कता समूह ने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह सहित 37 मैतेई विधायकों और दो सांसदों को कांगला फोर्ट बुलाया, जो प्राचीनकाल में मैतेई साम्राज्य की सत्ता का केंद्र होता था. अपने करीब 60,000 स्वयंसेवक होने का दावा करने वाला यह समूह चाहता था कि पार्टी लाइन से इतर जाकर ये सभी निर्वाचित प्रतिनिधि मणिपुर और मैतेई हितों के प्रति अपनी वचनबद्धता जताएं.
बीरेन सिंह ने तो इस पर कोई जवाब नहीं दिया लेकिन दो सांसदों और भाजपा के 25 विधायकों के अलावा कांग्रेस के पांच, नेशनल पीपल्स पार्टी के चार, जद (यू) के दो और एक निर्दलीय विधायक कांगला फोर्ट पहुंचे. किले के गेट पर कोई सुरक्षाकर्मी नहीं बल्कि अरामबाई तेंगगोल के सशस्त्र सदस्य तैनात थे. इससे पूर्व सुबह ही सैन्य पोशाकधारी और हथियार लहराते कुछ युवा खुली छत वाली जिप्सियों में सवार होकर किले में दाखिल हो चुके थे. अरामबाई तेंगगोल सदस्यों ने किले में प्रवेश से पहले विधायकों के सुरक्षा कर्मचारियों को साथ आने से रोक दिया.
उन विधायकों ने एक वचनपत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें अरामबाई तेंगगोल की मांगें लिखी थीं. इनमें कुकी विद्रोहियों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) समझौता रद्द करना, म्यांमार के शरणार्थियों को मिजोरम निर्वासित करना, 1951 की स्थिति को आधार बनाकर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू करना, म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाना और कुकी प्रवासियों को अनुसूचित जनजाति सूची से हटाना शामिल था. बाद में बीरेन सिंह ने भी इस पर हस्ताक्षर किए.
लगता है कि किले के अंदर कुछ और भी भयावह घटित हुआ, जैसा कांग्रेस के संचार • प्रमुख जयराम रमेश ने खुलासा किया कि अरामबाई तेंगगोल के सदस्यों ने मणिपुर कांग्रेस अध्यक्ष के. मेघचंद्र पर हमला किया. अन्य स्रोतों में भी ऐसा दावा किया गया कि कुकी के खिलाफ कार्रवाई में राज्य सरकार का समर्थन न करने की वजह से कांग्रेस के दो अन्य विधायकों के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया.
この記事は India Today Hindi の February 14, 2024 版に掲載されています。
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