लोकसभा चुनावों की घोषणा में बमुश्किल महीने भर का ही वक्त बचा है लेकिन इस चुनावी साल में कुछ राजनैतिक दलों के चुनाव चिह्न की जंग खत्म होती नहीं दिख रही. इन पार्टियों में महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और शिवसेना के साथ-साथ बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के दोनों धड़े शामिल हैं. दरअसल, ये तीनों पार्टियां ऐसी हैं जो पिछले तीन साल में टूटी हैं और अब इनके अलग-अलग धड़े मूल पार्टी होने का दावा कर रहे हैं. एनसीपी और एलजेपी के चुनाव चिह्न विवाद से संबंधित मामला चुनाव आयोग के पास है, जबकि शिवसेना के चुनाव चिह्न से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
चुनाव चिह्न को लेकर सबसे अहम विवाद महाराष्ट्र की एनसीपी से जुड़ा है. 2023 में अजित पवार के नेतृत्व में पार्टी के एक धड़े ने बगावत कर दी और महाराष्ट्र की सरकार में शामिल हो गया. अजित पवार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बनाए गए. एनसीपी का एक धड़ा पार्टी के संस्थापक और अजित पवार के चाचा शरद पवार के साथ है.
चुनाव चिह्न को लेकर अगर किसी पार्टी में कोई विवाद होता है तो उसकी सुनवाई इलेक्शन सिंबल्स (रिजर्वेशन ऐंड अलॉटमेंट) ऑर्डर, 1968 के तहत की जाती है. एनसीपी का चुनाव चिह्न विवाद अभी चुनाव आयोग के पास विचाराधीन है. दोनों धड़ों के प्रतिनिधियों ने अपना-अपना पक्ष आयोग के सामने रखा है. एनसीपी का चुनाव चिह्न 'एनालॉग अलार्म घड़ी' है और इसे हासिल करने के लिए दोनों पक्षों ने आयोग के सामने अपने-अपने तर्क दिए हैं.
इस मामले पर आयोग में हुई अब तक की सुनवाई के बारे में चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, "दोनों पक्षों की बात सुनने का काम पूरा हो गया है. अजित पवार के धड़े का मुख्य तर्क यह था कि उसके पास पार्टी के चुनाव चिह्न पर जीते हुए विधायकों और सांसदों की अधिक संख्या है, जबकि शरद पवार खेमे का मुख्य तर्क यह रहा कि सांगठनिक ढांचे का अधिकांश हिस्सा उसके पास है. आने वाले कुछ दिनों में आयोग अपना फैसला सुनाने की तैयारी कर रहा है." यह पूछे जाने पर कि फैसला किस धड़े के पक्ष में जाएगा, वे सीधा जवाब देने से बचते हुए कहते हैं कि आयोग अपने ढंग से दोनों पक्षों के तर्कों का परीक्षण कर रहा है और इसके बाद ही कोई फैसला सुनाया जाएगा.
この記事は India Today Hindi の February 14, 2024 版に掲載されています。
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