गए साल हमारे कॉन्क्लेव का विषय था इंडिया मूमेंट या भारत का लम्हा. मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि भारत का वह लम्हा बड़ा और काफी बड़ा होता गया है. अब आइए अपनी महत्वाकांक्षा को बुलंद करें और इसे इंडिया मूवमेंट या बढ़ते भारत की बात कहें. इस अंदाज में हम खुद को यह याद दिलाते रहते हैं कि हमें क्या करना है. हम खुद से बड़ा सवाल पूछते रहें कि " आगे क्या ?" यानी हम आज ऐसा क्या कर सकते हैं कि भारत का यह लम्हा लंबे और कहीं ज्यादा लंबे वक्त तक बना रहे ? और इसे आंदोलन में बदल डालें, ताकि यह देश में ऐसा बदलाव लाए, जैसा पहले कभी नहीं हुआ. मेरे लिए, बेहतर भविष्य निर्माण का सबसे अच्छा तरीका उस भविष्य के बारे में स्पष्ट नजरिया रखना है. और फिर उस सपने को हकीकत में बदलने की दिशा में काम करें. आज मैं आपको भारत के भविष्य की पांच तस्वीरें दिखाना चाहता हूं जो मुझे लगता है कि है हमारी पहुंच में हैं.
पहली तो यही कि गरीबी रेखा को भूल जाइए, जिस पर काफी चर्चा होती है. मेरे हिसाब से आइए इसे हम गरिमा की रेखा में तब्दील करें.
करीब महीने भर पहले ही सरकार ने डेटा जारी किया कि देश में अति गरीबी लगभग समाप्त हो चुकी है. यानी, दयनीय हालत में गुजर-बसर करने वालों की तादाद देश की आबादी के दो फीसद से भी कम हो गई है. पर मुझे यह भी कहने की इजाजत दें कि अति गरीबी के हालात मिटाना बहुत ही आसान या निचली बाधा पार करने जैसा है. विश्व बैंक के अनुसार, गरीबी की सीमा रोजाना 2.15 पीपीपी डॉलर खर्च करने की क्षमता है. पीपीपी यानी परचेजिंग पावर पैरिटी /क्रय शक्ति अनुपात. मतलब यह कि यहां डॉलर की कीमत अमेरिकी डॉलर के मूल्य से लगभग आध है. इस हिसाब से लगभग 1,200-1,500 रुपए महीना या सिर्फ 40-80 रुपए रोजाना बैठता है. पिछले 10 वर्षों में मौजूदा सरकार ने करीब 20 करोड़ लोगों को अति गरीबी रेखा से ऊपर उठाने का उल्लेखनीय काम किया है.
この記事は India Today Hindi の April 03, 2024 版に掲載されています。
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