मात्रा के हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा निर्माता और सबसे बड़ा जेनरिक दवा निर्यातक होने के नाते, भारत ने दुनिया की स्वास्थ्य सेवा पर काफी असर डाला है. हम दुनिया भर में लाखों लोगों को सस्ती दवाइयां मुहैया कराते हैं, जिनमें अमेरिका में खपत होने वाली लगभग 'तीन में से एक गोली और यूके में 'चार में से एक' भारत में बनाई जाती है. एचआइवी का सुलभ उपचार और कम लागत वाले टीके उपलब्ध कराने में हमारी सफलता की दुनियाभर में तारीफ हुई है, जिससे भारत को 'विश्व की फार्मेसी' का खिताब मिला है. यह सफलता छोटे और बड़े मॉलीक्यूल दवा अनुसंधान और मैन्युफैक्चरिंग में हमारी विशेषज्ञता, कम कीमतों पर उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं का उत्पादन करने की हमारी क्षमता और कोविड- 19 महामारी जैसे वैश्विक स्वास्थ्य संकटों के प्रति हमारे झटपट अनुकूलन से उपजी है.
भारत के दवा निर्यात में जबरदस्त इजाफा हुआ है, जो वित्त वर्ष 19 में 919 अरब डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 24 में 928 अरब डॉलर (2.3 लाख करोड़ रुपए) हो गया. हालांकि, मात्रा के मामले में भारत की 14वीं रैंक से अंदाजा लगता है कि वैल्यू चेन में आगे बढ़ने की भरपूर संभावना है. इस क्षेत्र को मात्रा - आधारित से मूल्य-आधारित वैश्विक नेतृत्व में बदलने के लिए, इस उद्योग की भावी संभावनाओं को समझना जरूरी है.
उभरते अवसर: कैंसर और मधुमेह जैसी गैर-संचारी बीमारियां बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियां बन गई हैं, इसलिए बायोलॉजिक्स देखभाल के मानक के रूप में उभर रहे हैं. बायोलॉजिक्स, जो इंटरवेंशनल मेडिसिन्स का महत्वपूर्ण घटक है, पर 2028 तक सभी दवा खर्च का लगभग 40 फीसद हिस्सा होने का अनुमान है. तब दवाओं पर वैश्विक खर्च 23 खरब डॉलर (193 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंचने की उम्मीद है.
この記事は India Today Hindi の August 28, 2024 版に掲載されています。
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