प्रधानमंत्री कार्यालय ने संबंधित राज्यों के साथ बैठक की तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों के प्रतिनिधियों को तलब किया. इन सबके बीच दिल्ली और इसके आसपास के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले करोड़ों लोगों को यह आशंका एक बार फिर से सता रही है कि उन्हें फिर से अगले कुछ महीने दमघोंटू हवा में गुजारने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
आम लोगों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस बात से हैरान हैं कि आखिर हर साल इस समस्या के समाधान का दावा करने वाली सरकारों के कामकाज में आखिर कहां कमी रह जा रही है. करोड़ों रुपए के बजट और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने पर कड़े कानूनी कदम उठाने के प्रावधानों के बावजूद, इस साल के शुरुआती आंकड़े बता रहे हैं कि पराली जलाने के मामले बढ़ गए हैं. आम तौर पर 15 सितंबर से पंजाब के किसान धान की फसल के बाद बची पराली जलाना शुरू करते हैं ताकि खेत अगली फसल के लिए तैयार हो सके. इस साल 15 से 22 सितंबर के सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि पंजाब में पराली जलाने 63 मामले दर्ज किए गए, जबकि पिछले साल इस दौरान यह आंकड़ा सात था. इसी तरह हरियाणा में यह आंकड़ा पिछले साल के नौ के मुकाबले बढ़कर 34 पर पहुंच गया.
पराली जलाने के मामलों में तेजी आते देख प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी. के. मिश्रा ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई. इसमें केंद्र सरकार, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान सरकार और संबंधित एजेंसियों के अधिकारियों को बुलाया गया. बैठक में शामिल एक अधिकारी बताते हैं. "बैठक में जानकारी ली गई कि पराली जलाने के मामलों को रोकने के लिए राज्य सरकारों की तरफ से क्या किया जा रहा है. साथ ही पीएम के प्रधान सचिव ने यह भी कहा कि स्थिति बिगड़ने पर समयबद्ध तरीके से ग्रेडेड रिस्पॉन्स ऐक्शन प्लान (जीआरएपी) लागू करना चाहिए. जीआरएपी के तहत यह व्यवस्था बनाई गई कि स्थिति बिगड़ने पर किस-किस स्तर पर क्या-क्या एहतियाती कदम उठाए जाएंगे." बैठक में पी.के. मिश्रा ने दिल्ली पुलिस के आयुक्त को निर्देश दिया कि प्रतिबंध के बावजूद पटाखे जलाने वालों पर एजेंसियों की कार्रवाई सुनिश्चित की जाए.
この記事は India Today Hindi の October 23, 2024 版に掲載されています。
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