विरासत पर स्टालिन का जोर
India Today Hindi|October 30, 2024
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन अपनी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की लगातार दो कार्यकाल न जीत पाने की 50 साल पुरानी मनहूसियत तोड़ना चाहते हैं. डीएमके प्रमुख के लिए महज 18 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव जीतना बेहद अहम है.
अमरनाथ के. मेनन
विरासत पर स्टालिन का जोर

71 साल की उम्र में यह उनका बतौर मुख्यमंत्री अभी पहला ही कार्यकाल है, और वे फिर युवा होने से तो रहे. यही नहीं, अगर वे यह चुनाव जीत लेते हैं तो यह ऐसी उपलब्धि होगी जिसे उनके दिवंगत पिता और पांच बार मुख्यमंत्री रहे एम. करुणानिधि भी हासिल नहीं कर सके. फिर परिवार का मामला तो है ही - स्टालिन अपने बेटे और पहली बार के विधायक उदयनिधि की कुर्सी सुरक्षित करना चाहते हैं, जिन्हें अक्तूबर में उपमुख्यमंत्री पद पर पदोन्नत कर दिया गया.

डीएमके प्रमुख ने पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है-234 सदस्यों की विधानसभा में 200 सीट जीतना (अभी उनके पास अपनी 133 सीटें, और गठबंधन की सहयोगी पार्टियों के साथ 159 सीटें हैं). काम शुरू भी हो गया है. अक्तूबर में ही डीएमके ने सभी 234 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए बाहरी पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए. पार्टी के महासचिव दुरईमुरुगन का कहना है कि ये पर्यवेक्षक बूथ कमेटियों और और बूथ स्तर के एजेंटों पर ध्यान देने के अलावा निर्वाचन क्षेत्र के विकास के बारे में सीधे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को रिपोर्ट करेंगे और जीत सकने वाले उम्मीदवारों की पहचान भी करेंगे.

स्टालिन सरकार, पार्टी की जनछवि को सुधारने के लिए सामाजिक क्षेत्र के नित नए कार्यक्रम लाती रही है. डीएमके की अगुआई वाले सेक्युलर प्रोग्रेसिव एलायंस को, जिसमें कांग्रेस और 12 अन्य पार्टियां भी शामिल हैं, 2026 में सत्ता-विरोधी भावना से जूझना होगा. साथ ही उसे प्रतिद्वंद्वी दलों की चुनौती का सामना भी करना होगा, जिसमें रूपहले परदे के बड़े सितारे विजय की तमिलागा वेत्री कड़गम (टीवीके) भी है, जो ज्यादा युवा विकल्प पेश करने की उम्मीद कर रही है. राजनैतिक विश्लेषक रामू मणिवन्नन कहते हैं, "डीएमके सरकार का कामकाज औसत रहा है, पर उसके कुछ कार्यक्रम और पहल सफल हैं. पार्टी में कोई खास अंतर्कलह नहीं दिखती, पर उदयनिधि के उभरने के साथ कुछ नए समीकरण बनेंगे."

बीते तीन दशकों से डीएमके के सतरंगे गठबंधन ने छोटी-छोटी जातियों और समुदायिक धड़ों को अपने साथ जोड़े रखा है, जो चुनावों के दौरान उसका अहम जनाधार होते हैं. एकजुटता की इस पहल की बदौलत ही हाल के चुनावों में उसकी वोट हिस्सेदारी खासकर प्रतिद्वंद्वी एआइएडीएमके की सुप्रीमो जयललिता के गुजरने के बाद काफी बेहतर रही है.

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