वर्ष 2025 भारत के सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने की दिशा में खासा अहम लम्हा है.. इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को निर्धारित किए हुए एक दशक बीत चुका है, और हमारी अब तक की प्रगति का सफर दरअसल निरंतर चुनौतियों की दास्तान है. हमने मृत्यु दर को कम करने और स्वास्थ्य सेवा का विस्तार करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है. लेकिन गैर-संचारी रोगों से होने वाली असामयिक मौतों में कमी लाने और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पक्का करने जैसे एसडीजी-3 के मुख्य लक्ष्यों को पूरा करने के लिए नवाचारी समाधानों और नई प्रतिबद्धता की जरूरत है.
हम 2025 में स्वास्थ्य सेवा के जिस परिदृश्य का सामना करेंगे वह पहले से कहीं ज्यादा जटिल है और यह बीमारियों के बढ़ते बोझ का संकेत देता है जो 2047 में 'विकसित भारत' की हमारी स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को आकार देगा. हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैंआजादी के बाद से बच्चा और जच्चा मृत्यु दर में तीन से चार गुना सुधार हुआ है, 90 फीसद से ज्यादा आबादी सामान्य बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण करा चुकी है और जीवन प्रत्याशा दोगुनी होकर 70 वर्ष हो गई है. हालांकि, हम रोगों के बढ़ते बोझ का सामना कर रहे हैं जिस पर फौरन ध्यान देने और नए ढंग से उसके समाधान ढूंढ़ने की जरूरत है. कुल मौतों में से 66 फीसद एनसीडी (गैर-संचारी रोगों) से होती हैं. यह दर 2000 में 45 फीसद थी, जिसमें सर्कुलेटरी सिस्टम की बीमारियां चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित मौतों का 32 फीसद हिस्सा हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों का द्वंद्व समझने में मदद करते हैं. ये कुपोषण से परे बढ़ते मोटापे और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी के रूप में बच्चों तक में दिखाई दे रही हैं. यह रुझान खासकर शहरी क्षेत्रों में साफ दिखता है, जहां बदलती जीवनशैली और आहार पैटर्न ने 30 और 40 वर्ष आयुवर्ग के लोगों में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी बीमारियों और यहां तक कि कुछ कैंसर के समय से पहले होने का अंदेशा बढ़ा दिया है.
この記事は India Today Hindi の January 15, 2025 版に掲載されています。
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