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नेहरू के युग (1950-64) में लागू विकास नीति की आलोचना राजनीति में ही नहीं हुई है बल्कि कुछ अर्थशास्त्री भी देश के प्रदर्शन का आकलन करते समय उसकी आलोचना करते हैं। नेहरू के युग की 4 फीसदी वृद्धि दर और 1980 के बाद की 6 फीसदी वृद्धि दर के बीच का बड़ा अंतर अक्सर याद दिलाया जाता है। मगर ध्यान रखें कि नेहरू के दौर में 4 फीसदी वृद्धि दर उस अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा ढांचागत बदलाव थी, जो उससे पहले के 100 साल में 1 फीसदी से भी कम रफ्तार से बढ़ी थी। विश्व बैंक के पास नेहरू के अंतिम सालों (1961-64) के तुलना करने लायक आंकड़े मौजूद हैं, जिनके मुताबिक उन सालों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 5 फीसदी थी। उस दौरान निम्न और मध्यम आय वाले देशों की औसत वृद्धि दर 4.3 फीसदी और दुनिया भर की औसत वृद्धि दर 5.2 फीसदी थी।
वृद्धि में असली गिरावट नेहरू युग के बाद आई जब 1965-66 के भीषण खाद्य संकट ने विकास में रुकावट डाली। उसके बाद कांग्रेस में विभाजन, आपातकाल थोपे जाने के राजनीतिक असर और जनता पार्टी की विजय तथा पतन के कारण आई राजनीतिक अस्थिरता ने विकास के प्रयासों को और भी बेअसर किया। यहां ध्यान रहे कि 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1965 तथा 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्धों ने भी विकास को पटरी से उतारे रखा। मगर 1980-81 के बाद औसत वृद्धि दर 6 फीसदी पर बनी रही।
नेहरू के जमाने की वृद्धि दर और 1980-81 से छह फीसदी की औसत वृद्धि दर के बीच अंतर की वजह अक्सर नेहरू के दौर की एक खास नीति को बताया जाता है। कहते हैं कि नेहरू ने उन उद्योगों पर जोर दिया, जो आयात होने वाले माल को देश में ही बनाते। इस वजह से श्रम के अधिक इस्तेमाल से बनने वाले माल के निर्यात के मौकों का फायदा नहीं उठाया जा सका, जबकि उससे विनिर्माण में रोजगार तेजी से बढ़ता। 1951 में मिल में बने कपड़े के निर्यात की सबसे अधिक संभावना थी और हथकरघा बुनकरों को संरक्षण देने का राजनीतिक आंदोलन उसकी राह में बाधा बन गया। ध्यान रहे कि आजादी के पहले के कॉरपोरेट औद्योगिक विकास की दिशा काफी हद तक आयात हो रहे माल का उत्पादन करने की ओर थी और उससे व्यापार संरक्षण की मांग उठी। यह प्रवृत्ति विकास पर हमारे कंपनी जगत के नजरिये से कभी खत्म नहीं हुई है।
この記事は Business Standard - Hindi の December 19, 2024 版に掲載されています。
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राजधानी दिल्ली फिर गंभीर प्रदूषण की चपेट में
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बुधवार को एक बार फिर प्रदूषण तेजी से बढ़ा है। शहर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) लगातार दूसरे दिन गंभीर श्रेणी में दर्ज किया गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक चार दिन के भीतर ही एक्यूआई दोगुने से अधिक पहुँच गया है। बीते 14 दिसंबर को यह जहाँ 193 पर था वहीं 18 तारीख को यह 445 पर दर्ज किया गया, जो इस माह में अब तक सबसे अधिक है। बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए राजधानी दिल्ली और आसपास के शहरों में ग्रैप-4 की पाबंदियां लागू कर दी गई हैं।
एसआईएफ से बढ़ेंगे विकल्प
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने तथाकथित 'स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड्स' या एसआईएफ को अधिसूचित किया है और कुछ माह पहले परिकल्पित इस नए परिसंपत्ति वर्ग के नियम कायदों को स्पष्ट किया है।
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नेहरूवादी मानवतावाद और भारत का विकास
आजादी के बाद पहले डेढ़ दशक के नियोजित विकास की नीतियों को नेहरूवादी समाजवाद के बजाय नेहरूवादी मानवतावाद कहना बेहतर होगा। विस्तार से बता रहे हैं नितिन देसाई
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संस्थाओं की रक्षा है राजनीति की बड़ी चुनौती
लगता है कि अमेरिका को अतिआत्मविश्वास का नतीजा भुगतना पड़ेगा। 2016 में जब डोनाल्ड ट्रंप पहली बार वहां के राष्ट्रपति चुने गए थे तभी से तर्क दिया जा रहा है कि जिस देश की संस्थाएं मजबूत और स्थिर हैं, उस देश की दिशा को स्थायी रूप से बदलने के बहुत कम रास्ते उनके पास हैं।
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महामारी के बाद बहुत धीरे उबर रहे हैं लघु और मझोले उद्यम
वित्त वर्ष 2015 में जीडीपी में एमएसएमई की हिस्सेदारी 32.2 फीसदी थी, जो वित्त वर्ष 20 में घटकर 30.5 फीसदी रह गई। महामारी के दौरान वित्त वर्ष 2021 में यह और गिरकर 27.3 फीसदी पर आ गई
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ट्रंप की हिटलिस्ट से बचा भारत, 2024 के आंकड़ों से चिंता
भारत कैलेंडर वर्ष 2023 में उन शीर्ष 10 देशों में शामिल नहीं है, जिनका अमेरिका से सर्वाधिक व्यापार घाटा था, लेकिन वह इस सूची में शामिल होने से बाल-बाल बचा है।