"जो मनुष्यों में अधम हैं वे मुझ आत्मशिव को, आत्मकृष्ण को नहीं भजते हैं क्योंकि माया ने उनका ज्ञान हर लिया है।"
‘यह पाऊँ, वह पाऊँ... ' पहले जो था नहीं, वह मिलेगा तो भी छूट जायेगा। पहले जो था, अभी है, बाद में रहेगा उसको तो सहज में पा सकते हैं। लेकिन जो सहज में पा सकते हैं और जिसे खोने का भय नहीं, उधर को जो नहीं जाते, उनकी बुद्धि मारी गयी है। और वे धनभागी हैं जिनकी बुद्धि में भगवान और सत्संग का महत्त्व है। वे भगवान का रस, ज्ञान, आनंद पाते हैं और भगवान शाश्वत हैं तो उस शाश्वतता में एकाकार हो जाते हैं; कुछ बनते नहीं हैं, जो है उसको जान लेते हैं।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ।। (गीता : ७.१५)
この記事は Rishi Prasad Hindi の February 2024 版に掲載されています。
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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अपने ज्ञानदाता गुरुदेव के प्रति कैसा अद्भुत प्रेम!
(गतांक के 'साध्वी रेखा बहन द्वारा बताये गये पूज्य बापूजी के संस्मरण' का शेष)
समर्थ साँईं लीलाशाहजी की अद्भुत लीला
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।