एक बार की बात है। गुरु नानकजी सत्संग करते-करते उत्तर भारत से चलते-चलते पहुँच गये श्रीलंका। वहाँ अपना डेरा डाला। बाला- मरदाना साथ में थे। वहाँ के राजा को पता चला कि उत्तर भारत से पंजाब आदि में अलख जगाते - जगाते गुरु नानक नाम के कोई फकीर आये हैं। वह उनके पास आया और बोला: "बाबा! आप सौदागर हैं?"
नानकजी बोले: "हाँ, मैं सौदागर हूँ।"
"क्या सौदा करते हैं?"
"उच्च संस्काररूपी माल देता हूँ और निम्न संस्काररूपी शुल्क ले लेता हूँ अर्थात् 'मैं दीन हूँ, मैं दुःखी हूँ, मैं पापी हूँ, मैं बीमार हूँ...' ये संस्कार मैं ले लेता हूँ और 'मैं आत्मा हूँ, चैतन्य हूँ, मैं प्रभु का हूँ, प्रभु मेरे हैं...' ये संस्कार बदले में दे देता हूँ। ऐसा मैं सौदागर हूँ।"
この記事は Rishi Prasad Hindi の November 2024 版に掲載されています。
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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कर्म करने से सिद्धि अवश्य मिलती है
गतासूनगतासुंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥
अपने ज्ञानदाता गुरुदेव के प्रति कैसा अद्भुत प्रेम!
(गतांक के 'साध्वी रेखा बहन द्वारा बताये गये पूज्य बापूजी के संस्मरण' का शेष)
समर्थ साँईं लीलाशाहजी की अद्भुत लीला
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।