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लंकादहन

Naye Pallav

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Naye Pallav 17

हनुमानजी माता सीता से लंका में अशोकवाटीका में छोटा रूप धारण कर मिले तथा सीता माता की आज्ञा से अपनी भूख मिटाने के लिए वाटिका से फल तोड़कर खाने लगे।

लंकादहन

तब वहां पर पहरा दे रहे राक्षसों ने हनुमानजी को देखा और उन्हें साधारण वानर समझकर उन्हें मारने के लिए दौड़ पड़े; परंतु हनुमानजी ने अपनी शक्ति का प्रयोग कर राक्षसों पर आक्रमण किया। कुछ राक्षस अपने प्राण बचाकर रावण के समक्ष पहुंचे तथा उन्होंने रावण को समाचार दिया कि एक वानर ने अशोकवाटिका को उजाड़ दिया है तथा बहुत से राक्षसों को भी मार दिया है। रावण यह समाचार सुनकर बहुत क्रोधित हुआ, तब रावण के पुत्र इंद्रजीत ने हनुमानजी को पकड़कर लाने के लिए रावण से आज्ञा ली तथा हनुमानजी पर ब्रह्मास्त्र से वार कर उन्हें बंदी बना लिया तथा सभा में ले गए। हनुमानजी रावण के सामने खड़े विचार कर रहे थे। समस्त लोकों को डरानेवाला महाबाहु रावण हनुमानजी को सामने इस प्रकार निर्भय खड़ा देखकर क्रोधीत हो गया। वह अपने महामंत्री से बोला, "अमात्य ! इससे पूछो कि यह कहां से आया है ? इसे किसने भेजा है? सीता से यह क्यों बाते कर रहा था? अशोकवाटिका को इसने क्यों नष्ट किया? इसने किस उद्देश्य से राक्षसों को मारा? मेरी इस लंकापुरी में आने का प्रयोजन क्या है?"

रावण की आज्ञा पाकर मंत्री ने हनुमानजी से लंका में आने का कारण पूछा। तब हनुमानजी ने उत्तर दिया, "मैं श्री रामचन्द्र जी का दूत हूं और उनके ही कार्य से यहां आया हूं।"

Naye Pallav

このストーリーは、Naye Pallav の Naye Pallav 17 版からのものです。

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