Panchjanya - February 26, 2023
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हिन्द की डोर हिन्दी
उभरते और सशक्त भारत ने विश्व भर में रह रहे भारतवंशियों में भी नए उत्साह और आत्मविश्वास का संचार किया है। फिजी में हुए 12वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में यही बात उभर कर सामने आई । हिन्दी का तकनीक के साथ समागम उसे वैश्विक भाषा के रुप में स्थापित करने का माध्यम बने और भारतवंशी औपनिवेशिक ग्रंथि को पीछे छोड़कर अपनी संस्कृति को पुन: स्थापित करे-यह सम्मेलन का संकल्प रहा
“भारतीय संस्कारों ने दिलाया दुनिया में भारतवंशियों को सम्मान"
फिजी के उप प्रधानमंत्री प्रो. बिमान प्रसाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण की प्रगति के बारे में सुनते हैं तो उनकी आंखों की कोर गीली हो जाती हैं। कह उठते हैं- 'एक राम मंदिर फिजी में भी बनना चाहिए'। उनकी बातों में अपने पुरखों की माटी के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का भाव है। हिन्दी के प्रति उनका स्नेह देखते ही बनता है। वे आगे बढ़ते भारत की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि आज दुनिया हर क्षेत्र में भारत की धाक मानती है। भारत के बढ़ते कदम उनके मन को सुकून देते हैं। अपनी भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली स्थित फिजी उच्चायोग में उप प्रधानमंत्री प्रो. बिमान प्रसाद ने पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर से फिजी-भारत संबंधों के विभिन्न पक्षों पर खुलकर बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
10+ mins
प्रगति पश्चिमीकरण नहीं : जयशंकर
फिजी के नादी में भारत और फिजी सरकार के संयुक्त तत्वावधान में संपन 12वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि औपनिवेशिक युग के दौरान दबा दी गई भाषाएं अब वैश्विक मंच पर आवाज उठा रही हैं। अब सांस्कृतिक पुनर्संतुलन आवश्यक है
6 mins
कृत्रिम बुद्धिमत्ता करेगी हिंदी का कायाकल्प
कृत्रिम बुद्धिमत्ता जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है और ऐसा माना जा रहा है कि अगले एकाध दशक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की बदौलत हमारी दुनिया का कायाकल्प होने वाला है
8 mins
तन फिजी में मन भारत में
श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद अयोध्या आदर्श शासन का उदाहरण बनी, जिसे रामराज्य कहा जाता है। फिजी के लोगों के लिए भारत उसी आदर्श रामकाज की स्थली है, जिसके आंगन में सबके लिए स्थान है । कह सकते हैं कि यहां के भारतीय 'दिल है हिंदुस्थानी' के साथ ही 'दिमाग भी हिंदुस्थानी' के पर्याय
3 mins
अपनी भाषा बढ़ाए आशा
अंग्रेजों का काल यह बता चुका है कि कैसे भारत पर अंग्रेजी लादे जाने के बाद वैश्विक जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत तक घट गई। मातृभाषा में बच्चों द्वारा शीघ्र सीखे जाने के निष्कर्ष कई शोधों में सामने आ चुके हैं। मातृभाषा में शिक्षा देने से ही ज्यादा से ज्यादा मानव संसाधन देश निर्माण में अपना योगदान दे सकेगा
7 mins
सधे कदमों के साथ बढ़ने की जरूरत
जनजातीय समाज के जो लोग ईसाइयत या अन्य पंथ में कन्वर्ट हो चुके हैं, उन्हें जनजाति के नाम पर मिलने वाली सरकारी सुविधाएं न मिलें। अनेक संगठन ऐसे लोगों को जनजाति की सूची से हटाने की मांग कर रहे हैं। इसे ही 'डी-लिस्टिंग' कहा जा रहा है
6 mins
फिर से भव्य हुआ गोवा का 'सोमनाथ'
गोवा की प्रमोद सावंत सरकार विदेशी आक्रांताओं की कुदृष्टि का शिकार हुए मंदिरों एवं अन्य धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार कराकर भारत के सनातन गौरव को वापस लाने में जुटी। ऐतिहासिक श्री सप्तकोटेश्वर मंदिर का हुआ जीर्णोद्धार
2 mins
शिव की नगरी में शब्द साधना
10 से 12 फरवरी तक विश्व की सबसे प्राचीन नगरी कही जाने वाली वाराणसी में 'काशी शब्दोत्सव' का आयोजन हुआ। इसमें देशभर से आए साहित्यकारों, लेखकों, फिल्मकारों आदि ने अपने विचार रखे
5 mins
समृद्धि की जुड़ीं असंख्य कड़ियां
देश के बड़े उद्योगपति ही नहीं, बल्कि विदेशी उद्योगपतियों के लिए भी उत्तर प्रदेश पसंदीदा स्थल बना है। यही कारण है कि इस बार उत्तर प्रदेश वैश्विक सम्मेलन में लक्ष्य से तीन गुना अधिक निवेश आया
9 mins
तुर्किये में 'ऑपरेशन दोस्त'
भारत मानवीयता के आधार पर आपदाग्रस्त तुर्किये और सीरिया की खुले मन से सहायता कर रहा है। भारत विरोधी तुर्किये को यह बात समझ आ गई है कि पाकिस्तान नहीं, बल्कि भारत उसका सच्चा दोस्त है जो कठिन समय में उसकी मदद में जुटा है
6 mins
Panchjanya Magazine Description:
Utgiver: Bharat Prakashan (Delhi) Limited
Kategori: Politics
Språk: Hindi
Frekvens: Weekly
स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद 14 जनवरी, 1948 को मकर संक्राति के पावन पर्व पर अपने आवरण पृष्ठ पर भगवान श्रीकृष्ण के मुख से शंखनाद के साथ श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संपादकत्व में 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक का अवतरण स्वाधीन भारत में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रेरक आदशोंर् एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों का स्मरण दिलाते रहने के संकल्प का उद्घोष ही था।
अटल जी के बाद 'पाञ्चजन्य' के सम्पादक पद को सुशोभित करने वालों की सूची में सर्वश्री राजीवलोचन अग्निहोत्री, ज्ञानेन्द्र सक्सेना, गिरीश चन्द्र मिश्र, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, तिलक सिंह परमार, यादव राव देशमुख, वचनेश त्रिपाठी, केवल रतन मलकानी, देवेन्द्र स्वरूप, दीनानाथ मिश्र, भानुप्रताप शुक्ल, रामशंकर अग्निहोत्री, प्रबाल मैत्र, तरुण विजय, बल्देव भाई शर्मा और हितेश शंकर जैसे नाम आते हैं। नाम बदले होंगे पर 'पाञ्चजन्य' की निष्ठा और स्वर में कभी कोई परिवर्तन नहीं आया, वे अविचल रहे।
किन्तु एक ऐसा नाम है जो इस सूची में कहीं नहीं है, परन्तु वह इस सूची के प्रत्येक नाम का प्रेरणा-स्रोत कहा जा सकता है जिसने सम्पादक के रूप में अपना नाम कभी नहीं छपवाया, किन्तु जिसकी कल्पना में से 'पाञ्चजन्य' का जन्म हुआ, वह नाम है पं. दीनदयाल उपाध्याय।
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