बायोफोर्टिफिकेशन फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार करने की प्रक्रिया है। इसे कृषि संबंधी विधियों, पारंपरिक प्रजनन या जैव तकनीक जैसे जैनेटिक इंजीनियरिंग और जीनोम एडिटिंग के माध्यम से हासिल किया जा सकता है।
माइक्रोग्रीन्स सब्जियों और जड़ी-बूटियों के अंकुर से पैदा होते हैं, जो लगभग दो से तीन इंच लंबे होते हैं। मूली, ब्रोकोली, शलजम, गाजर, चार्ड, लेट्यूस, पालक, अमरंथ, फूलगोभी, पत्तागोभी, चुकंदर, अजमोद और तुलसी समेत पौधों की कई किस्में हैं, जिन्हें माइक्रोग्रीन्स के रूप में उगाया जा सकता है। इन्हें अपने रोजमर्रा के भोजन में स्वस्थ और पौष्टिक आहार के रूप में शामिल किया जा सकता है, इन्हें घर पर आसानी से उगाया जा सकता है।
अध्ययन से पता चला है कि बीज पोषक-प्राइमिंग के माध्यम से जिंक बायोफोर्टिफिकेशन छोटे मटर और सूरजमुखी के पौधों में जिंक के आवश्यक स्तर को हासिल करता है। इन परिणामों का दुनिया भर में 'छिपी हुई भूख' और आपातकालीन या आपदा की तैयारी दोनों पर प्रभाव पड़ता है।
शोधकर्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने पाया कि कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था के साथ या उसके बिना छोटे स्थानों में विभिन्न प्रकार के बिना मिट्टी के उत्पादन प्रणालियों में माइक्रोग्रीन्स उगाए जा सकते हैं। इसमें जिंक बायोफोर्टिफिकेशन घटक एक महत्वपूर्ण और नया नवाचार है।
डि गोइया ने बताया कि बायोफोर्टिफिकेशन बीज से पोषण को बढ़ाने के लिए फसलों को उगाने की प्रक्रिया है। यह खाद्य फोर्टिफिकेशन से अलग है, जिसमें कटाई के बाद के प्रसंस्करण के दौरान खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों को मिलाया जाता है। उन्होंने कहा कि दुनिया के गरीब क्षेत्रों में, या तबाही के बाद की परिस्थितियों में, जिंक के घोल में बस बीजों को भिगोना पोषक तत्वों से भरपूर माइक्रोग्रीन्स के उत्पादन के लिए एक व्यावहारिक और असरदार रणनीति है।
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कपास विज्ञानी - डॉ. इब्रोखिम वाई. अबदूराखमोनोव
डॉ. इब्रोखिम वाई. अबदूराखमोनोव एक उजबेक विज्ञानी हैं जिनको 2013 के इंटरनेशनल कॉटन एडवाईजरी कमेटी रिसर्चर के तौर पर जाना जाता है। डॉ. इब्रोखिम वाई. अबदूराखमोनोव कोलाबोरेटर प्रोजैञ्चट डायरेञ्चटर हैं।
बिहार का सॉफ्टवेयर इंजीनियर कर रहा ड्रैगन फ्रूट की खेती
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