सरसों के तेल में 60-65 प्रतिशत तक मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (MUFA), 1520: पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA) और 12 प्रतिशत तक संतृप्त वसा होती है, जो इसे हृदय के लिए लाभकारी बनाती है। इसके अलावा, सरसों के पत्तों में प्रचुर मात्रा में विटामिन A, C और K कैल्शियम, मैग्नीशियम और आयरन होता है, जो इसे एक पौष्टिक साग भी बनाता है। सरसों की खेती से केवल पोषण ही नहीं, बल्कि आर्थिक लाभ भी मिलता है। इसकी खेती मुख्यतः शीतकालीन रबी मौसम में की जाती है और यह फसल सूखे के प्रति सहनशील मानी जाती है, जो इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु में उपयुक्त बनाती है। सरसों की खली का उपयोग पशुओं के लिए प्रोटीन युक्त चारा तैयार करने में होता है, जिससे पशुपालन भी लाभान्वित होता है। इस प्रकार सरसों एक बहुआयामी फसल है, जो पोषण, स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण योगदान देती है। सरसों की खेती किसानों के लिए लाभकारी है और सही तकनीक से इसकी उपज को बढ़ाया जा सकता है। आइए जानें, सरसों की खेती में कौन-कौन सी शस्य प्रथाएं अपनाकर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
भूमि की तैयारी
यह फसल समतल और अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट से दोमट मिट्टी में अच्छी उपज देती है। जहां की जमीन क्षारीय है वहां प्रति तीसरे वर्ष जिप्सम 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से मई-जून माह में मिलाना चाहिए।
सिंचित क्षेत्रों में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन-चार जुताईयां तवेदार हल से करनी चाहिएं। गर्मी में गहरी जुताई करने से कीटों की सफाई अच्छे से हो जाती है।
बारानी क्षेत्रों में प्रत्येक बरसात के बाद तवेदार हल से जुताई कर नमी को संरक्षित करना चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए जिससे भूमि में नमी बनी रहे तथा भाप बनकर न उड़े।
अंतिम जुताई के समय 1.5 प्रतिशत क्विनलफॉस 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं, ताकि भूमिगत कीटों का नियंत्रण हो सके।
बुवाई का समय और विधि
बुवाई का समय : सरसों की बुवाई का उचित समय अक्टूबर से नवंबर तक का है। इस समय पर बुवाई करने से फसल ठंडे मौसम में अच्छी तरह बढ़ती है, जिससे उपज अधिक होती है।
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।