गोबर... काला सोना इसे न जलायें
Modern Kheti - Hindi|15th June 2023
हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। यहां के किसान प्राचीन काल से ही अपनी खेती में पशुओं का गोबर एवं मलमूत्र का उपयोग करते हैं। लेकिन वास्तविकता में लोग इन्हें ना तो उचित रूप में जमा करते हैं और ना ही उचित ढंग से इस्तेमाल। इससे हमारे देश में गोबर की खाद की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं होती है, जितनी होनी चाहिए।
नरेन्द्र कुमार गोयल, संदीप रावल, आराधना बाली व विशाल गोयल
गोबर... काला सोना इसे न जलायें

गोबर की खाद मुख्य रूप से पशुओं के गोबर, मूत्र तथा उनके नीचे बिछाये हुए बचे खुचे चारे आदि को सड़ने सें बनती है। इसमें वे सभी पोषक तत्व पाये जाते हैं जिन्हें पौधे अपने भोजन के रूप में गृहण करते हैं। किसान भाई इसका ठीक तरीके सें इस्तेमाल नहीं करते हैं। आमतौर पर किसान भाई अपने पशु फार्म पर गोबर का उपयोग उपले बनाकर जलाने के काम में लाते हैं और बाकी जो अवशेष बच जाते हैं, उनको गोबर के साथ मिलाकर सीधे खेतों में गोबर खाद के रूप में प्रयोग करते हैं जिससे फसलों में कई प्रकार की बीमारियां पैदा हो जाती हैं। इसके अलावा पशुओं के मलमूत्र को भी इकट्ठा करने की कोशिश नहीं की जाती। यह नाली में इकट्ठा होकर घर को गंदा कर रहा होता है। इस मलमूत्र में पोषक तत्वों की मात्रा गोबर में पोषक तत्वों की मात्रा से अधिक होती है। बचा हुआ चारा, भूसा, कूड़ा कर्कट यदि अच्छी तरह सड़ाया न जाये तो पौधे इनमें से पोषक तत्व ग्रहण नहीं कर सकते। भूमि में सड़ाने में लगे बैक्टीरिया उपस्थित नत्रजन का उपयोग कर लेते हैं जिससे भूमि में नत्रजन की कमी हो जाती है। इसके अलावा यह भी देखने में आया है कि इन अवशेषों में कार्बन और नत्रजन का अनुपात 40:1 का होता है जोकि भूमि और फसल दोनों के लिये ठीक नहीं है, परन्तु जब इन अवशेषों से कम्पोस्ट खाद बना ली जाये तो अनुपात 10 से 15:1 का हो जाता है जिससे पौधे अपने पोषक तत्व बड़ी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

Denne historien er fra 15th June 2023-utgaven av Modern Kheti - Hindi.

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