इस वर्ष भारत में मॉनसून में तीन सप्ताह की देरी हुई, जिसके कारण जून महीने की शुरुआत में पूरे उपमहाद्वीप में बहुत कम बारिश हुई और भीषण गर्मी पड़ी। उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। विलंबित और कमजोर मॉनसून आमतौर पर तब होता है जब (उत्तरी गोलार्द्ध) वसंत ऋतु में अल नीनो विकसित होता है, जैसा कि ला नीना के लगातार तीन वर्षों के बाद इस वर्ष हुआ है। यह आने वाले महीनों में और मजबूत होता रहेगा।
अल नीनो घटनाएं दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाओं को गहराई से प्रभावित करती हैं। इसके चलते खाद्य उत्पादन और पानी की उपलब्धता के साथ पारिस्थितिक तंत्र पर दूरगामी परिणाम पड़ते हैं। भारत के लिए इसके निहितार्थ महत्वपूर्ण हैं। खासतौर से कृषि उत्पादन पर प्रभाव सबसे गंभीर चिंताओं में से एक है।
अल नीनो की घटनाएं सीधे तौर पर उपमहाद्वीप में बढ़ते तापमान, अत्यधिक गर्मी और अधिक अनियमित वर्षा पैटर्न को प्रेरित करने से जुड़ी हुई हैं। अगर इनके लंबे इतिहास को देखा जाए तो अल नीनो की कम से कम आधी घटनाएं गर्मियों के मॉनसून के मौसम के दौरान सूखे से जुड़ी हुई हैं। 2015 में दक्षिणी भारत के चेन्नई में एक असाधारण वर्षा की घटना हुई। यहां एक दिन में इतनी वर्षा रिकॉर्ड की गई, जितनी पूरी एक सदी में कभी 24 घंटे में नहीं देखी गई थी। एक दिन में होने वाली इस रिकॉर्ड भीषण वर्षा के लिए आंशिक रूप से 2014 और 2016 के बीच चरम अल नीनो घटना को जिम्मेदार ठहराया गया। यहां 30 लाख से अधिक लोग आवश्यक सेवाओं से वंचित हो गए और भारतीय अर्थव्यवस्था को करीब 3 अरब अमेरिकी डॉलर का झटका लगा। ये घटनाएं उन दूरगामी प्रभावों की याद दिलाती हैं जो चरम मौसम की घटनाओं के बढ़ने से समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ सकते हैं।
Denne historien er fra September 15, 2023-utgaven av Modern Kheti - Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra September 15, 2023-utgaven av Modern Kheti - Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।