अल नीनो का खेती पर पड़ेगा प्रभाव जलवायु के अनुरूप ढालें किसान
Modern Kheti - Hindi|September 15, 2023
एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में भारत में अचानक सूखा पड़ने की घटनाओं में वृद्धि होगी। इसका फसल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, सिंचाई की मांग बढ़ेगी और भूजल का दोहन बढ़ेगा।
अल नीनो का खेती पर पड़ेगा प्रभाव जलवायु के अनुरूप ढालें किसान

इस वर्ष भारत में मॉनसून में तीन सप्ताह की देरी हुई, जिसके कारण जून महीने की शुरुआत में पूरे उपमहाद्वीप में बहुत कम बारिश हुई और भीषण गर्मी पड़ी। उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। विलंबित और कमजोर मॉनसून आमतौर पर तब होता है जब (उत्तरी गोलार्द्ध) वसंत ऋतु में अल नीनो विकसित होता है, जैसा कि ला नीना के लगातार तीन वर्षों के बाद इस वर्ष हुआ है। यह आने वाले महीनों में और मजबूत होता रहेगा।

अल नीनो घटनाएं दुनिया भर में चरम मौसम की घटनाओं को गहराई से प्रभावित करती हैं। इसके चलते खाद्य उत्पादन और पानी की उपलब्धता के साथ पारिस्थितिक तंत्र पर दूरगामी परिणाम पड़ते हैं। भारत के लिए इसके निहितार्थ महत्वपूर्ण हैं। खासतौर से कृषि उत्पादन पर प्रभाव सबसे गंभीर चिंताओं में से एक है। 

अल नीनो की घटनाएं सीधे तौर पर उपमहाद्वीप में बढ़ते तापमान, अत्यधिक गर्मी और अधिक अनियमित वर्षा पैटर्न को प्रेरित करने से जुड़ी हुई हैं। अगर इनके लंबे इतिहास को देखा जाए तो अल नीनो की कम से कम आधी घटनाएं गर्मियों के मॉनसून के मौसम के दौरान सूखे से जुड़ी हुई हैं। 2015 में दक्षिणी भारत के चेन्नई में एक असाधारण वर्षा की घटना हुई। यहां एक दिन में इतनी वर्षा रिकॉर्ड की गई, जितनी पूरी एक सदी में कभी 24 घंटे में नहीं देखी गई थी। एक दिन में होने वाली इस रिकॉर्ड भीषण वर्षा के लिए आंशिक रूप से 2014 और 2016 के बीच चरम अल नीनो घटना को जिम्मेदार ठहराया गया। यहां 30 लाख से अधिक लोग आवश्यक सेवाओं से वंचित हो गए और भारतीय अर्थव्यवस्था को करीब 3 अरब अमेरिकी डॉलर का झटका लगा। ये घटनाएं उन दूरगामी प्रभावों की याद दिलाती हैं जो चरम मौसम की घटनाओं के बढ़ने से समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ सकते हैं।

Denne historien er fra September 15, 2023-utgaven av Modern Kheti - Hindi.

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सब्जियों की जैविक खेती हमारे देश में हरित क्रांति के अंतर्गत सिंचाई के संसाधनों के विकास, उन्नतशील किस्मों और रासायनिक उर्वरकों एवं कृषि रक्षा रसायनों के उपयोग से फसलों के उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई। लेकिन समय बीतने के साथ फसलों की उत्पादकता में स्थिरता या गिरावट आने लगी है। इसका प्रमुख कारण भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रास होना है।

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दलहनी फसलों में उर्द व मूंग का प्रमुख स्थान है। जायद में समय से बुवाई व सघन पद्धतियों को अपनाकर खेती करने से इन फसलों की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। जायद में पीला मौजेक रोग का प्रकोप भी कम होता है।

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खुम्बी एक पौष्टिक आहार है जिसमें प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे पोषक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। खुम्बी में वसा की मात्रा कम होने के कारण यह हृदय रोगियों तथा कार्बोहाईड्रेट की कम मात्रा होने के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा आहार है। खुम्बी एक प्रकार की फफूंद होती है। इसमें क्लोरोफिल नहीं होता और इसको सीधी धूप की भी जरूरत नहीं होती बल्कि इसे बारिश और धूप से बचाकर किसी मकान या झोंपड़ी की छत के नीचे उगाया जाता है जिसमें हवा का उचित आगमन हो।

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