नील हरित शैवाल एक जीवाणु फायलम होता है, जो प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा उत्पादन करते हैं। यहां जीवाणु के नीले रंग के कारण इसका नाम सायनों (अर्थात नीला) से पड़ा है।
नील हरित काई वायुमंडलीय नाइट्रोजन यौगिकीकरण कर, धान की फसल को आंशिक मात्रा में की नाइट्रोजन पूर्ति करता है। यह जैविक खाद नत्रजनधारी रासायनिक उर्वरक का सस्ता व सुलभ विकल्प है जो धान की फसल को, न सिर्फ 25-30 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है, बल्कि उस धान के खेत में नील हरित काई के अवशेष से बने सेन्द्रीय खाद के द्वारा उसकी गुणवत्ता व उर्वरता कायम रखने में मददगार साबित होती है।
नील हरित काई के उपयोग से लाभ
1. नील हरित काई एक जैविक खाद है जिसे धान उत्पादक किसान अपने स्तर पर आसानी से तैयार कर सकते हैं।
2. नील हरित काई सामान्य रूप से धान की फसल को करीब 25 से 30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर नत्रजन की पूर्ति करता है।
3. यह काई उपचार के पश्चात प्रत्येक सीजन में अपने अवशेषों के द्वारा करीब 800 से 1200 किलोग्राम तक सेन्द्रीय खाद प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है जिसकी वजह से उसे खेत के मिट्टी की गुणवत्ता और उपजाऊ क्षमता कायम रहती है।
4. नील हरित काई के द्वारा कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ स्त्रावित होता है जिससे बीजों का अंकुरण और फसलों में सामान रूप से वृद्धि होती है।
5. लगातार 3-4 वर्षों तक यदि धान के उसी खेत में नील हरित काई का उपयोग किया जाये तो आने वाले कडू सीजन तक पुनः उपचार करने की आवश्यकता नहीं होती साथ में इस काई के उपयोग का लाभ आगामी उन्ही फसल पर भी देखा गया है।
6. जैविक खाद के रूप में नील हरित काई के उपयोग के फलस्वरूप अतिरिक्त उपज मिलने से करीब 400 से 500 रु. प्रति हैक्टेयर तक शुद्ध आमदनी होती है।
धान के खेत में नील हरित काई का उपचार
1. ब्यासी करने के बाद अथवा रोपा लगाने के 6 से 10 दिन के भीतर ही नील हरित काई का उपचार किया जाना आवश्यक है। इस काई के उपचार के पहले ध्यान रहे, धान के खेत में 8 से 10 सैं.मी. से ज्यादा पानी न हो। खेत सूखने न पाये, इसके लिये खेत के मेड़ों में से चूहे के बिल आदि छेदों को तथा मुही को बंद कर दिया जाए।
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