इन बीज कानूनों को लागू करने (Enforcement) का अधिकार कृषि विभाग के एक वर्ग बीज निरीक्षक तथा बीज लाइसेंसिंग प्राधिकारी के कंधों पर है। कृषि वर्ग प्रति वर्ष प्रति छमाही ऐसे परिपत्र (Circular) या आदेश पारित करते रहते हैं जो उपरोक्त बीज कानूनों में नहीं है और वे ऐसी कार्यवाही के लिये बीज कानूनों द्वारा अधिकृत नहीं है। यहां यह उल्लेख करना सही होगा कि अपनी मर्जी के ऐसे आदेश पारित करने का बहाना कितना पावन पवित्र और पाक है कि यह किसानों को गुणवत्ता युक्त बीज उपलब्ध करवाने हेतु किया जा रहा है।
राजस्थान सरकार ऐसे कार्य करने में अग्रसर रहती है। पिछले कुछ समय पूर्व लाइसैंस लेने एवं नवीनीकृत करवाने के लिए राजस्थान सरकार ने बिना किसी पत्र के एक चैकलिस्ट जारी की जिसके 20 बिन्दुओं में सूचना मांगी थी। दूसरे राज्य भी ऐसे ही पत्र जारी कर रहे हैं परन्तु इनमें लिखी बातों का बीज कानूनों में कहीं उल्लेख नहीं है।
1. बीज विक्रय:
बीज उत्पादन एवं वितरण/विक्रय एक राज्य की सीमा तक सीमित नहीं किया जा सकता। अतः बीज व्यवसाईयों को अपना तैयार किया बीज अपने राज्य एवं दूसरे राज्य में विक्रय के लिए बीज कानून बाधक नहीं, बल्कि इनको लागू करने वाले कृषि अधिकारी अपनी मर्जी से कानून की समीक्षा करते हैं और बाधा डालने का प्रयास करते हैं।
2. बीज विक्रय लाइसैंस:
बीज अधिनियम-1966 के अनुसार लाइसेंस लेकर बीज विक्रय करना जरूरी नहीं था। बीज विक्रय लाइसैंस बीज नियंत्रण आदेश-1983 के लागू होने या यूं कहें जुलाई 1994 से लाइसैंस लेकर लागू हुआ क्योंकि 10 साल उच्चतम न्यायालय में वाद रहा और इसका क्रियान्वन (Execution) निलम्बित रहा। अब बिना लाइसेंस प्राप्त किए बीज विक्रय अपराध (Crime) है।
3. बीज उत्पादक एवं बीज नियंत्रण आदेश:
बीज विक्रय लाइसैंस बीज नियंत्रण आदेश 1983 के अन्तर्गत डीलर को दिया जाता है। बीज नियंत्रण आदेश 1983 में मात्र डीलर शब्द है उसमें बीज उत्पादक शब्द नहीं है परन्तु बीज उत्पादक भी बीज तैयार कर विक्रय करते हैं। अतः वे भी डीलर की श्रेणी में आ जाते हैं। यह उल्लेख बंगलौर उच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत एन.वी.पाटिल एवं अन्य के 1999 में निर्णीत वाद में किया गया है।
4. फार्म-B की भाषा:
Denne historien er fra 1st November 2024-utgaven av Modern Kheti - Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra 1st November 2024-utgaven av Modern Kheti - Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।