किसी भूमि पर एक समय में फसलों का हेर-फेर इस प्रकार करना जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति प्रभावित न हो-फसल चक्र कहलाता है। पंजाब व हरियाणा राज्यों में सबसे ज्यादा प्रचलित धान-गेहूं फसल चक्र है जिसके दुष्परिणाम सामने आने लगे है। भूमि की उपजाऊ शक्ति में व भूमिजल में तेजी से गिरावट इसके मुख्य दुष्परिणाम तो है ही, साथ ही भूमिगत जल में कीटनाशियों व वातावरण प्रदूषण अन्य दुष्प्रभाव भी हमारे सामने चुनौती लिये खड़े हैं। ऐसी परिस्थिति में फसल चक्र सबसे अच्छा विकल्प है ताकि अन्न उत्पादन के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति भी बरकरार रखी जा सके।
फसल चक्र अपनाने से भूमि की भौतिक रासायनिक व जैविक संरचना में सुधर आता है व खरपतवार व कीटों की रोकथाम भी हो जाती है। भूमि की उपजाऊ शक्ति में सुधार व सिंचाई जल की गिरावट में कमी आती है।
फसल चक्र अपनाने में मूल सिद्वांत फसल चक्र अपनाने में कुछ मूल सिद्वांत अपनाने बहुत जरुरी हैं
» अधिक खाद व सिंचाई चाहने वाली फसलों के बाद कम खाद व कम सिंचाई चाहने वाली फसलों का उत्पादन।
» अधिक निराई-गुड़ाई चाहने वाली फसलों के बाद कम निराई-गुड़ाई चाहने वाली फसलों ऊपरी जड़ वाली फसलों के बाद गहरी जड़ वाली फसलें।
» फसल चक्र में दलहनी फसलों का समावेश।
» ज्यादा मात्रा में खाद शोषण करने वाली फसलों के बाद खेतों को खाली छोड़ना।
फसल चक्र में बदलाव कैसे करें:
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अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धी प्राप्त विज्ञानी डॉ. महिन्द्र सिंह रंधावा
डॉ. महिन्द्र सिंह रंधावा एक बहुआयामी शकसीयत के मालिक थे। डॉ. महिन्द्र सिंह रंधावा का जन्म एक जाट किसान परिवार के घर 2 फरवरी 1909 को जीरे में हुआ। उनमें बचपन से ही पढ़ने-लिखने व खेलने की दिलचस्पी थी।
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फसल चक्र अपनायें भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ायें
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