उस दिन बहुत गरमी थी. सुबह होने के बावजूद सूरज की धूप काफी तेज थी. दूर नदी से बादल का एक छोटा सा टुकड़ा उठा और नीले आसमान की ओर उड़ गया.
उस ने देखा कि नीचे जमीन सूख चुकी है. कहींकहीं मिट्टी फट चुकी है. लोग तेजी से इधरउधर दौड़ रहे हैं. खेतों में जो किसान काम कर रहे हैं, उन की हालत काफी खराब है. बादल काफी हलका था, इसलिए रुई के फोहे की तरह कभी यहां, तो कभी वहां उड़ रहा था.
वह नीचे की हालत देख कर दुखी हुआ और मन ही मन सोचने लगा, 'अगर मैं किसी तरह इन की मदद कर पाता, तो बहुत अच्छा होता. यदि मैं गरमी से परेशान लोगों को थोड़ी ठंडक या उन की प्यास बुझा पाता, तो कितना अच्छा होता.'
पास से गुजर रही हवा उस का मुरझाया चेहरा देख कर सबकुछ समझ गई.
"बादल भैया, इन मनुष्यों पर तरस मत खाओ. अपनी इस हालत के लिए ये लोग खुद ही जिम्मेदार हैं," हवा ने दोटूक शब्दों में कहा तो बादल का ध्यान टूटा.
“ये लोग पेड़ों को काट रहे हैं. हवा में जहरीली गैस घोल रहे हैं. ओजोन परत पर छेद हो रहा है. पर्यावरण का संतुलन निरंतर बिगड़ता जा रहा है..."
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जो ढूंढ़े वही पाए
अपनी ठंडी, फूस वाली झोंपड़ी से राजी बाहर आई. उस के छोटे, नन्हे पैरों को खुरदरी, धूप से तपती जमीन झुलसा रही थी. उस ने सूरज की ओर देखा, वह अभी आसमान में बहुत ऊपर नहीं था. उस की स्थिति को देखते हुए राजी अनुमान लगाया कि लगभग 10 बज रहे होंगे.
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स्कूल का संविधान
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पोपी और करण की मास्टरशेफ मम्मी
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डिक्शनरी
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