काव्या के स्कूल में होने वाली फैंसी ड्रैस प्रतियोगिता में वह क्या बने इस पर विराम लग चुका था.
डाक्टर, फौजी, नेता, अभिनेता फलसब्जियों के सुझाव के बाद मम्मी का काव्या को ट्रैफिक सिग्नल बनाने के विचार पर सब ने अपनी सहमति दे दी थी, पर काव्या को चिंता थी, “मम्मी, मैं ट्रैफिक सिग्नल कैसे बनूंगी? क्या कहूंगी बन कर."
“तुम चिंता मत करो, मैं ने इसे औनलाइन देखा है. ट्रैफिक सिग्नल की गत्ते की पोशाक मैं बना लूंगी?"
“तुम क्या बोलोगी, यह मैं तुम्हें लिख कर दे दूंगी. तुम बस उसे याद कर लेना,” मम्मी के साथ काव्या के दादाजी ने भी उसे तसल्ली दी तो वह उत्साह से भर गई.
मम्मी ने औनलाइन वीडियो देख कर कार्डबोर्ड काट कर उस पर लाल, पीले और हरे रंग के 3 कागज काट कर चिपकाए. तिकोनी टोपी में भी लाल, पीले और हरे रंग के 3 गोले क्रमवार लगाए और दादाजी ने तीनों रंगों का महत्त्व समझाते हुए कविता की पंक्तियां लिखीं और काव्या को याद करवाई.
जिस दिन प्रतियोगिता थी, उस दिन पापा ने उस की ढेर सारी फोटो खींची और दादी ने उस का जोश बढ़ाया. उस की जीत के लिए प्रार्थना की और उसे आशीर्वाद दिया.
सब की खुशी का ठिकाना न रहा, जब काव्या फैंसी ड्रैस प्रतियोगिता में स्कूल से प्रथम पुरस् जीत कर ले आई.
ट्रैफिक सिग्नल बन कर उसे इतना मजा आया कि वह अब रोज ही जबतब गत्ते और कागज से बनी पोशाक पहन कर सब को ट्रैफिक नियम बताने लगती है.
एक दिन शाम को दादाजी सैर कर के जैसे ही बरामदे में आए काव्या दौड़ कर उन के सामने आ गई और एक हाथ से उन्हें वहीं रोकते हुए बोली, “लाल रंग की मेरी बत्ती, कैसे नहीं पड़ी दिखाई?"
नियम तोड़ कर दादाजी, क्यों अपनी गाड़ी है दौड़ाई?” काव्या के चुलबुलेपन पर दादाजी हंसते हुए बोले, “मेरी छोटी रानी, मैं तो पैदल यात्री हूं, गाड़ी कहां है मेरे पास..."
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