चंपकवन के राजा शेरसिंह हर साल की तरह नए साल में कुछ नया करना चाहते थे. उन्होंने इस के बारे में बहुत सोचा, लेकिन उन के दिमाग में कुछ भी नया और अनोखा विचार नहीं आया.
तब उन्होंने अपने मंत्री जेन्ना सियार को बुलाया और उस से कहा, "मंत्री, हम नए साल पर कुछ नया, कुछ अनोखा करना चाहते हैं, लेकिन हमें कुछ नया नहीं सूझ रहा है. तुम हमारी कुछ नया सुझाने में मदद कर सकते हो."
मंत्री कुछ देर सोचने लगा, फिर बोला, "महाराज, मेरे पास एक विचार है, लेकिन आप को बताते लग रहा है."
"चिंता मत करो, मुझे बताओ कि तुम क्या सोच रहे हो."
"महाराज, जो नया विचार मेरे दिमाग में आ रहा है उस को करने के लिए आप को एक दिन के लिए अपना सिंहासन छोड़ना पड़ेगा."
यह सुनते ही महाराजा चौंक कर बोले, "ऐसा कैसे मंत्रीजी, तुम्हें तो पता ही है कि हमें अपना सिंहासन कितना प्यारा है. उस का और हमारा जन्मजन्म का साथ है."
अब मंत्री क्या कहता? राजा भी सोच में पड़ गए. कुछ देर बाद महाराजा खुद बोले, ठीक है, मंत्री. तुम अपनी योजना बताओ. हम एक दिन के लिए अपना सिंहासन जो हमें अपने प्राणों से भी प्यारा है उसे छोड़ने के लिए तैयार हैं.
जेन्ना के पास कहने के लिए कुछ नहीं था, उस ने शेर सिंह को सोचने पर मजबूर कर दिया.
थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, "ठीक है मंत्रीजी, मुझे अपना विचार बताओ. यदि मुझे अपना प्रिय सिंहासन एक दिन के लिए छोड़ना पड़े, तो ऐसा ही होगा."
जब जेन्ना ने राजा को अपना विचार बताया तो शेरसिंह बहुत प्रसन्न हुआ.
"मंत्री यह एक उत्तम विचार है. यह न केवल अत्यधिक मनोरंजक होगा, बल्कि हमारे विपक्ष को भी उचित प्रतिक्रिया मिलेगी."
योजना के अनुसार राजा शेरसिंह के सब से बड़े आलोचक जंपी बंदर को एक दिन का राजा बनाने का राज्य में ऐलान हो गया. जंपी पूरे चंपकवन में कहता घूमता था कि यदि उसे एक दिन के लिए राजा बना दिया जाए तो वह चंपकवन की काया पलट कर देगा.
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