"उस की दादी बोलीं, "मेरी प्यारी लाडली, जब तक यह है, तब तक इस का आनंद लो."
अंजलि ने सोचा कि दादीमां के कहने का क्या मतलब था. जल्दी ही उसे एहसास हुआ कि स्कूल की छुट्टियां खत्म हो गई हैं और सप्ताह समाप्त होने के बाद स्कूल शुरू होगा.
“छुट्टियां खत्म हो गई हैं, अब मैं स्कूल नहीं जाना मैं चाहती हूं,” कड़वाहट के साथ अंजलि ने कहा.
“मैं ने तो सोचा था कि तुम्हें स्कूल जाना अच्छा लगा. अंजलि, तुम्हें अपने दोस्त आदित्य के साथ खेलना अच्छा लगता था, है न?” दादीमां ने हैरानी से पूछा.
“दादी, वह तो स्कूल बदलने जा रहा है, क्योंकि उस का परिवार पुणे शिफ्ट हो रहा है, अब मैं स्कूल पसंद नहीं करती हूं, क्योंकि वह अब मजेदार नहीं लगता है. मेरा सिर्फ एक ही दोस्त था और वह भी चला गया है,” वह रोते हुए बोली.
उन का नाश्ता खत्म हो गया था, दादीमां ने आगे कुछ भी नहीं कहा और वह भी परेशान हो गईं कि कैसे अंजलि को खुश करें?
दोपहर का समय अंजलि का पसंदीदा समय था, क्योंकि वह अपने कमरे में दोपहर की रोशनी को चमकते हुए देखा करती थी.
“देखो, आसमान कितना सुंदर दिख रहा है," अंजलि के कमरे में टहलते हुए दादीमां ने कहा. लेकिन अंजलि ने कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह सोच रही थी कि स्कूल कैसे जाए.
“दादीमां, क्या मैं कभी स्कूल नहीं जा सकती?” उस ने उत्सुकता से पूछा.
“क्यों, मेरी प्यारी लाडली?" दादीमां ने पूछा.
“क्योंकि स्कूल पहले जैसा नहीं होगा,” अंजलि ने कहा.
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