पास के जंगल से एक लकड़बग्घा आ गया था और उसे खींच कर ले जा रहा था. वहां से गुजर रहे राहुल ने यह देखा और तेजी से एक डंडा उठाया और उस पर मार दिया.
खुद का बचाव करने के लिए लकड़बग्घा राहुल पर झपटा. चीखने की आवाज सुन कर कमला मौसी घर से बाहर आईं और ग्रामीणों को इकट्ठा कर लिया. सब ने मिल कर लकड़बग्घे को भगाया.
“आज यदि राहुल न होता तो वह मेरी बेटी को ले गया होता,” मौसी सब को बता रही थीं.
उसी शाम बिनौय और अनिकेत कंचे खेल रहे थे.
महेश चाचा ने उन्हें डांट लगाई, "तुम हर समय खेलते रहते हो, कभी पढ़ाई भी कर लिया करो ? राहुल से कुछ सीखो, पढ़ाई में तो वह पहले नंबर पर रहता ही है, आज बहादुरी में भी उस ने बाजी मार ली."
"बिना किसी कारण के हर समय हमें डांट पड़ती रहती है,” अनिकेत बोला.
“यदि हम भी कोई बहादुरी का काम करें तो गांव में हमारा भी नाम हो जाएगा,” बिनौय ने कहा.
“पर हम ऐसा क्या करें? अब रोजरोज गांव में लकड़बग्घा थोड़े ही आएगा और अगर आ भी गया तो जरूरी थोड़ी है कि हमारी नजर उस पर पड़े, हां, हो सकता है, उस समय हम सो रहे हों या कहीं और हों,” अनिकेत ने कहा.
“क्यों न हम ही जंगल में चलें, वहां कोई तो जानवर मिलेगा,” बिनौय ने सुझाव दिया.
" पर हम उस से मुकाबला कर पाएंगे?” अनिकेत ने पूछा.
“क्यों नहीं कर पाएंगे? हम पूरी तैयारी के साथ चलेंगे. मुझे तो पेड़ कर चढ़ना आता है, खतरा हुआ तो पेड़ पर चढ़ जाऊंगा,” बिनौय ने बताया.
“पर मैं तो पेड़ पर नहीं चढ़ सकता, मैं क्या करूंगा?” अनिकेत ने पूछा.
“तू अपने साथ पटाखे ले कर चलना, आवाज व आग से भी तो जानवर भाग जाते हैं."
“फिर तो ठीक है, हम जंगल जा कर कोई बहादुरी का काम कर के आएंगे, जिस से गांव में हमारा भी नाम हो,” बिनौय जोश में आ गया था.
अनिकेत उत्साह से भर गया, दोनों दोस्त जंगल जाने की तैयारी करने लगे. उन्होंने एक थैले में पटाखे, माचिस, टौर्च और खानेपीने का सामान भर लिया.
बिनौय ने भी एक रस्सी ले रखी थी.
“तुम इस से क्या करोगे?” अनिकेत बोला.
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