वह 8×10 फीट की साधारण रसोई थी. उस में सारी चीजें बड़े तरीके से अपनी अपनी जगह पर रखी हुई थीं. रसोईघर से सटे बाईं ओर की तरफ एक बड़ा सा दालान था. दालान से सटे 3 बड़े और शानदार कमरे थे. रसोईघर तक पहुंचने के लिए इन्हीं कमरों से हो कर जाना होता था. पहली मंजिल पर बने कमरे भूतल पर बने कमरों के नक्शे के आधार पर ही बने थे. मकान में कुल मिला कर 5 परिवार रहते थे.
भूतल वाले कमरे में भारतीय सेना में हवलदार प्रवीण कुमार अपनी पत्नी मनीषा और 2 बच्चों के साथ रहता था. बाकी और कमरों में उस के 4 बड़े भाई अपने अपने परिवारों के साथ रहते थे.
हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गांव डूडीवाला बिशुनपुरा में भले ही पांचों परिवारों के चूल्हे अलगअलग जलते रहे हों लेकिन पांचों भाइयों में गजब की एकता थी. दुखसुख होने पर पांचों भाई एकदूसरे के लिए 24 घंटे एक पैर पर खड़े रहने के लिए तैयार रहते थे. भाइयों की एकता देख कर पासपड़ोस के लोग ईर्ष्या से जलभुन उठते थे, लेकिन पड़ोसियों की परवाह किए बिना पांचों भाई अपनी मस्ती में रहते थे.
बहरहाल, एक रोज अपने किचन में घर की सब से छोटी बहू और हवलदार प्रवीण की पत्नी मनीषा खड़ी हो कर आटा गूंथने में मस्त थी. पीछे से अचानक से खुद को उस ने किसी की मजबूत बांहों में पूरी तरह जकड़ते हुए महसूस किया तो वह डर के मारे बुरी तरह उछल पड़ी. हाथ से आटा वाला परात छूटतेछूटते बचा.
पलट कर देखा तो उस के सामने उस का देवर दीपक खड़ा था. उसे डरीसहमी हालत में देख कर वह मुसकरा रहा था.
“देवरजी, ऐसे भी कोई मजाक करता है क्या भला?" डर के मारे मनीषा अभी भी कांप रही थी.
"क्या हुआ भाभी, आप इतनी डरी सी क्यों हैं?" दीपक बोला.
"आप तो ऐसे अंजान बनते हो जैसे आप को कुछ पता ही न हो. भला ऐसे भी कोई मजाक करता है क्या ? अभी कोई देख लेता तो क्या होता, जानते हो भी आप?" मनीषा इठलाते हुए बोली.
"हां, हमारा प्यार सरेआम रुसवा हो जाता, " भाभी मनीषा को अभी भी वह अपनी मजबूत बांहों में ले कर झूल रहा था.
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