चस शोभराज नेपाल से छूटा फ्रांस में बसा
Manohar Kahaniyan|February 2023
चार्ल्स गुरुमुख शोभराज होतचंद भवनानी उर्फ चार्ल्स शोभराज ऐसा अपराधी था, जिस ने अपराध और कार्यशैली के बूते दुनिया भर में अपनी अलग छवि बनाई. आखिर वह जुर्म के दलदल में कैसे धंसा? इस के अतीत की छानबीन की तो इस 'बिकनी किलर' की जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह...
भारत भूषण श्रीवास्तव
चस शोभराज नेपाल से छूटा फ्रांस में बसा

जितने भी जघन्य अपराध चार्ल्स शोभराज ने किए, उन के लिए एक हद तक ही उसे दोषी ठहराया जा सकता है. क्योंकि गलत नहीं कहा जाता कि मां के पेट से कोई मुजरिम नहीं बल्कि एक बच्चा पैदा होता मिट्टी की तरह होता है. जो कच्ची जैसी परवरिश, माहौल और हालात उसे मिलते हैं, वह उन में ढलता जाता है.

चार्ल्स शोभराज बीती 21 दिसंबर को 19 साल की लंबी सजा काटने के बाद नेपाल की एक जेल से रिहा हुआ. वह जुर्म की दुनिया में एक किंवदंती बन चुका है, जो रिहाई के बाद भी सुर्खियों में रहा.

उसे देख कर लगता नहीं कि वह कभी खूंखार और पेशेवर मुजरिम रहा होगा. जब वह जेल से बाहर आया तो एक संभ्रांत, रईस और समझदार बुजुर्ग लग रहा था. एकदम फिट चुस्तदुरुस्त ठीक वैसा ही जैसा अपनी जवानी के दिनों में दिखता था. एक कामयाब स्मार्ट बिजनैसमैन, एक मौडल या फिर कोई बड़ा आफीसर.

चार्ल्स की जिंदगी की कहानी वाकई फिल्मों जैसी है, जिस में उतारचढ़ावों की भरमार है. उस में रहस्य है, रोमांच है, उस से भी ज्यादा रोमांस है, हिंसा है, चालाकी भी है. और यह खतरनाक मैसेज भी कि जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास और जोखिम भी कभीकभी दुनिया, समाज, सभ्यता और शांति के लिए खतरा बन जाते हैं, बशर्ते उन्हें सही दिशा न मिले तो. यही सब चार्ल्स के साथ हुआ था.

शोभराज एक अंतरराष्ट्रीय प्रेम कथा का पात्र है जिस का पूरा नाम चार्ल्स गुरुमुख शोभराज होतचंद भवनानी कभी हुआ करता था. कहानी 1940 के दशक से शुरू होती है, जब पूरी दुनिया अस्थिरता के दौर से गुजर रही थी. लोग कमाने, खाने और सेटल होने की चिंता में यहां से वहां पलायन कर रहे थे. भारत भी इस से अछूता नहीं था.

इसी दौर में बड़ी तादाद में भारतीय रोजगार की तलाश में यूरोप और दीगर देशों की तरफ भाग रहे थे, जिन्हें गिरमिटिया के खिताब से नवाजा गया था.

ऐसा ही एक महत्त्वाकांक्षी शख्स था शोभराज हेचर्ड भवनानी, जो सिंधी समुदाय से था. पेशे से दरजी और कपड़ा व्यवसायी. भवनानी 1940 के लगभग वियतनाम गए थे और फिर वहीं के हो कर रह गए.

उन्होंने दक्षिणी वियतनाम के सब से बड़े शहर साइगन में डेरा डाला और थोड़ाबहुत पैसा कमाने के बाद जैसा कि आमतौर पर विदेश जाने वाले लोग करते हैं, प्यार करने लगे. उन की प्रेमिका का नाम था त्रान लोआंग फुन, वह पेशे से सेल्सगर्ल थी.

Denne historien er fra February 2023-utgaven av Manohar Kahaniyan.

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