जया घोष दुबलेपतले जिस्म की 19 वर्षीय युवती थी. देखने में वह बेहद खूबसूरत थी. दूध में केसर मिले रंग जैसी काया. आंखों में किसी को भी मदहोश कर देने वाला नशा, गुलाबी अधर और सेब जैसे लाल गालों ने उस के चेहरे को आकर्षक बना दिया था. जवानी उस पर पूरी तरह मेहरबान थी. उन्नत वक्ष, भारी नितंब और पतली कमर. जब वह हिरणी सी मदमस्त चाल से चलती थी तो राह से गुजरने वाले लोग आह भर कर रह जाते थे.
जया घोष की दिल को लुभाने वाली मुसकान मनचलों के दिलों पर बिजलियां गिराती थीं. कितने ही युवक जया घोष को अपनी ओर आकर्षित करने के चक्कर में घंटों उस के आलीशान मकान के सामने खड़े रह कर उस के बाहर आने का इंतजार करते रहते थे. लेकिन वे मनचले यह क्या जानते थे कि जया तो अपनी नजरों में कभी का एक हीरो बसा चुकी है.
वह हीरो था करण बहादुर. नेपाली मूल का करण बहादुर एक साल पहले उसे कोलकाता के चौरंगी लेन पर उस समय टकराया था, जब कादिर नाम के एक बदमाश ने बीच राह में जया को रोक कर उस का हाथ पकड़ लिया था. चौरंगी लेन का वह उभरता हुआ बदमाश था.
अपनी हेकड़ी जमाने के लिए कादिर जवान और खूबसूरत युवती का हाथ थाम कर उसे सीने से लगा लेता था, कभी दिल करता तो वह उस का चुंबन भी ले लेता था. राह चलते लोग उस की इस हरकत पर चूं तक नहीं करते थे. कारण था, उस बदमाश का छुरा, जिसे वह पैंट में यूं खोंस कर रखता था कि वह हर किसी को दिखाई देता रहे.
जया यूं अचानक अपना हाथ उस बदमाश द्वारा पकड़ लिए जाने से डर कर चीख पड़ी थी. वह बदमाश हा..हा... कर के हंस पड़ा था, 'सुंदर हो, नाजुक भी हो, तुम्हारे इन गालों पर एक चुम्मा तो बनता है मेरा. राजी से दोगी तो तुम्हें भी आनंद आएगा, राजी से नहीं दोगी तो पछताओगी कि कादिर की आगोश में आ कर मजा नहीं मिला. बोलो, क्या बोलती तू?'
जया घोष हाथ पकड़े जाने से पहले ही डरी हुई थी, उस का इरादा जान कर बुरी तरह डर गई. वह जोरजोर से चीखने लगी, "बचाओऽऽ बचाओऽऽ."
"कोई नहीं बचाएगा तुझे," कादिर मुसकराता हुआ बोला, “अगर कोई बचाने आया तो उस की मैं बोटीबोटी कर डालूंगा."
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