बाजरे के खेत में शव मिलने की खबर पूरे गांव में फैल गई. शव को कैमिकल डाल कर इस कदर जला दिया गया था कि लाश कंकाल में बदल गई थी. मृतक की पहचान होनी नामुमकिन थी. लाश के नाम पर शरीर के कुछ भाग की हड्डियां मात्र थीं. कंकाल के पास चप्पलें, कपड़े व अन्य सामान पड़े थे. सामान से लग रहा था कि यह कंकाल किसी महिला का है.
भगवान देवी ने कंकाल के पास मिली चप्पलें, पीले रंग का हेयर क्लिप, हाथ में बंधा कलावा, चांदी की 2 अंगूठियां, लाल रंग का कंगन, सलवारकुरता व अन्य सामान को देख कर कंकाल की पहचान अपनी बेटी रीता उर्फ मोनी के रूप में की.
भगवान देवी और उन के पति कुंवर सिंह थाने से लेकर पुलिस के उच्चाधिकारियों, यहां तक कि अदालत तक की दौड़ लगा रहे थे. लेकिन उन्हें बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की हत्या के बाद उस का कंकाल (लाश ) अंतिम संस्कार के लिए पिछले 40 महीनों से पुलिस नहीं दे रही थी.
वे चाहते थे कि बेटी की लाश जो कंकाल के रूप में बरामद हुई थी, मिल जाए तो वे उस का विधिविधान से अंतिम संस्कार कर दें. वह कंकाल उन की बेटी की है, इस के उन्होंने पुलिस को सबूत भी जुटा दिए थे. फिर भी पुलिस कंकाल उन की बेटी का नहीं मान रही थी.
उत्तर प्रदेश का एक जिला है इटावा. यहीं स्थित डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय की मोर्चरी में रखे एक डीप फ्रीजर में बेटी की लाश कंकाल के रूप में पिछले 40 महीने से कैद थी. ऐसा पुलिस के लापरवाह रवैए की वजह से हो रहा था.
पोस्टमार्टम और 2 बार डीएनए टेस्ट के बाद भी पुलिस जांच अधूरी रह गई थी. क्योंकि story के लिए जो नमूने 2 बार भेजे गए थे, वह सही तरीके से नहीं लिए गए थे. इस के बाद भगवान देवी ने एसएचओ के साथ ही एसएसपी (इटावा) को 22 अक्तूबर, 2020 तथा 22 फरवरी, 2021 व 26 अगस्त, 2021 को प्रार्थनापत्र दिए. इन में आरोपियों के नाम का खुलासा भी किया गया था.
लेकिन बारबार प्रार्थनापत्र देने के बावजूद न तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और न डीएनए रिपोर्ट ही दी गई. भगवान देवी लगातार बेटी का कंकाल देने की गुहार लगाती रही, लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी रही. उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.
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