पति के साथ अंडमान टूर पर गई प्रीति के लिए जर्मन टूरिस्ट टिल्डा से मिलना किसी अचरज से कम नहीं था। बातचीत के क्रम में प्रीति को उसने बताया कि वह अंडमान सोलो ट्रैवलिंग के लिए आई है। उसके पति और बच्चे जर्मनी में ही हैं। यह पूछने पर कि वह अकेले कैसा महसूस कर रही है? उसका जवाब था, "मैं एंजॉय कर रही हूं। मुझे समुद्र पसंद है। भारत पसंद है।" प्रीति मुस्कुराकर तब उसकी बातें सुन रही थी, क्योंकि वह ऐसे माहौल से थी, जहां लड़कियों और महिलाओं को कहीं जाना हो तो घर वालों के साथ ही जाना होता है। ऐसे में सोलो ट्रैवलिंग की बात ही दूर थी। लेकिन आज जमाना तेजी से बदल रहा है। लड़कियां आत्मनिर्भर हो रही हैं। उनकी यह आत्मनिर्भरता केवल पैसे कमाने तक ही सीमित नहीं रह गई है, वे आज मान्यताओं और बंधनों को भी तोड़ रही हैं। उनका मानना है कि हर उस चीज पर उनका हक है, जो आमतौर पर लड़कों के वर्चस्व के अंदर आती है। सोलो ट्रैवलिंग भी उनमें से ही एक है। सोलो ट्रैवलिंग का मतलब होता है, 'अकेले यात्रा करना', जो कि बेहद रोमांचक अनुभव होता है। लेकिन लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए 'सोलो ट्रैवलिंग' कितना सुरक्षित और रोमांचक होती है, यह इस सिक्के का दूसरा पहलू है, खासकर भारत में।
आउटलुक ट्रैवलर और सर्वे कंपनी टोलना ने भारत में महिलाओं के यात्रा पैटर्न और अपने अनुभवों को बेहतरीन बनाने के लिए 'वे क्या चाहती हैं?' प्रश्न पर सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं यात्रा से पहले निर्णय लेने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहती हैं। हालांकि अचरज की बात है कि 10 में से 8 उत्तरदाताओं का कहना है कि सोलो ट्रैवलिंग परिवार द्वारा लिए निर्णयों पर ही निर्भर करती है, क्योंकि महिलाओं की सोलो ट्रैवलिंग में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न उनकी सुरक्षा को लेकर ही उठता है।
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