देश में दलहनी फसलों की खेती तकरीबन 2 करोड़ 38 लाख हेक्टेयर भूमि में की जाती है, जिस से 6.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का औसत उत्पादन प्राप्त होता है, जो बेहद कम माना जा सकता है.
दलहनी फसलों के कम उत्पादन के कारणों में उन्नत कृषि तकनीक की कमी, उन्नतशील बीज व उर्वरक की कमी होने के साथ ही फसल पर कीट व बीमारियों के अत्यधिक प्रकोप को भी माना जा सकता है. दलहनी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट फली छेदक, फली मक्खी, पत्ती लपेटक, प्लू माथ, बीटल इत्यादि शामिल हैं.
कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, जनपद संतकबीर नगर में विशेषज्ञ, कृषि प्रसार, राघवेंद्र विक्रम सिंह बताते हैं कि दलहनी फसलों में अरहर की खेती देश के कई राज्यों में प्रमुख स्थान रखती है. वर्तमान में अरहर का औसत उत्पादन 8.5 क्विटल प्रति हेक्टेयर है, जो बेहद कम है. अरहर के कम उत्पादन में कीट व बीमारियां प्रमुख कारण हैं ऐसे में अगर समय रहते कीट व बीमारियों पर नियंत्रण कर लिया जाए, तो उत्पादन को दोगुना तक बढ़ाया जा सकता है.
राघवेंद्र विक्रम सिंह के मुताबिक, दिसंबर से फरवरी माह तक का समय अगेती व पछेती फसलों में फली बनने व फूल आने का होता है. इस अवस्था में अरहर की फसल पर सब से ज्यादा प्रकोप कीटों का पाया जाता है. इस के चलते कभीकभी अरहर की पूरी फसल खराब हो जाती है. ऐसी अवस्था में हमें अरहर में लगने वाले कीटों की पहचान कर उन के नियंत्रण को ले कर विशेष सजगता बरतने की जरूरत पड़ती है.
फली छेदक
फसल सुरक्षा विशेषज्ञ डा. प्रेम शंकर के मुताबिक, जहां पर भी दलहनी फसलों की खेती की जाती है, वहां इस कीट का प्रकोप ज्यादा होता है. यह कीट मध्यम आकार का सलेटी भूरे रंग का होता है.
इस कीट की लार्वा अवस्था ज्यादा खतरनाक होती है. कीट की वयस्क मादा मिट्टी की सतह के ऊपर पौधों के किसी भी भाग में अंडे देती है. अंडे से निकल कर लार्वा फली के ऊपर जालीनुमा आवरण बनाता है, जिस के नीचे से फलियों में प्रवेश कर अंदर ही अंदर दानों को खाती रहती है.
इस कीट के नियंत्रण से पहले इस का सर्वे करना जरूरी हो जाता है. इस के प्रबंधन के लिए 5-6 से ले कर 15-20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.
फली मक्खी कीट
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