आलू की बिजाई, खुदाई से ले कर बाजार तक पहुंचाने का काम काफी कठिन है, लेकिन अब कृषि यंत्रों ने आलू की खेती को और अधिक आसान बना दिया है. अब आलू की बोआई का काम भी पोटैटो प्लांटर मशीन से होने लगा है. साथ ही, आलू खुदाई का काम भी अब पोटैटो डिगर जैसी मशीनों से होने लगा है. आलू की फसल तैयार होने पर अगर आप आलू के अलगअलग साइजों में छंटाई करना चाहते हैं, तो उस के लिए आलू ग्रेडिंग यंत्र उपलब्ध है. इसलिए अब पहले की अपेक्षा आलू कहीं अधिक मुनाफे वाली फसल बन चुकी है.
आलू फसल से अच्छी उपज मिल सके, इस के लिए केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान एवं अन्य संस्थाओं के कृषि अभियंताओं द्वारा अनेक तरह के यंत्रों का विकास किया गया है. इन के उपयोग से आलू की वैज्ञानिक तरीके से बिजाई, गुड़ाई एवं खुदाई कर के भरपूर पैदावार आसानी से ली जा सकती है.
आलू की खेती में कृषि यंत्रों के प्रयोग से कम मेहनत लगती है, बीज व खाद का उचित उपयोग होता है.
सबसौयलर से करें जुताई
ज्यादातर खेतों में जमीन की परत सख्त बन जाती है. यह सख्त परत पानी को नीचे जाने से रोकती है, जिस से आलू की खेती में पैदावार की मात्रा एवं गुणवत्ता प्रभावित होती है. इसलिए आलू को अधिक पानी से बचाने और अधिक उपज लेने के लिए सूखे खेतों की बोआई से पहले ट्रैक्टरचालित सबसौयलर से गहरी जुताई जरूरी है.
यह यंत्र 12-15 इंच तक की गहराई पर चलाया जाता है. इस से सख्त परत टूट जाती है. गहरी जुताई से आलू के अलावा अन्य फसलों को भी लाभ मिलता है.
लेजरलैंड लैवलर से करें समतल खेत
बिजाई से पहले जब भी समय मिले, लेजरलैंड लैवलर यंत्र से खेत को समतल करना अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक है. लेजरलैंड लैवलर से खेतों को एकसार अर्थात समतल किया जा सकता है. ऐसा करने से पानी की खपत कम होती है.
पलेवा करने के बाद खेत को 3 बार हैरो एवं टिलर से जोतने के बाद दोहरा पाटा लगाने से खेत तैयार हो जाता है. अगर आप के पास रोटावेटर है, तो रोटावेटर से एक ही बार में खेत तैयार किया जा सकता है.
कृषि यंत्रों से करें बिजाई
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.