बढ़ती उम्र के निशां बच्चे के शरीर पर नजर आने लगते हैं। हार्मोन्स के चलते उनमें आने वाले बदलावों के कारण वह खुद में खुद की तलाश शुरू कर देते हैं। इस उम्र में जहां एक ओर अचानक से लंबाई बढ़ती है, तो दूसरी ओर तेजी से हार्मोन्स बदलते हैं। बदलती शारीरिक संरचना को स्वीकार कर पाना इतना भी आसान नहीं होता। शरीर में जमा होता फैट, चेहरे पर आते कील-मुहांसे, अनचाहे बालों का बढ़ना, साथ ही मूड स्विंग से एक साथ निपट पाना आपके लाडले के लिए आसान नहीं। इन हालातों में उसका घंटों शीशे में खुद को निहाराना या घर में सिमट जाना सरीखे तमाम बदलाव आम हैं। कई बार उनके लुक में आने वाले बदलाव उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी कर जाती हैं, जिसका असर उनके आत्मविश्वास पर भी पड़ता नजर आ सकता है। उनकी इस उहापोह में अभिभावक के तौर पर आप मददगार साबित हो सकती हैं या यूं कहें कि माता-पिता के तौर पर उन्हें सही दिशा दिखाना आपकी जिम्मेदारी बनती है। पर, थोड़ी-सी सूझबूझ के साथ ताकि वह आपको समझे और आपकी नसीहतों को आजमाकर समस्याओं से बचा रह सके।
बनिए बच्चे की दोस्त
बच्चा क्या कर रहा है और क्यों ? यह जानना आपकी पहली जिम्मेदारी है। उसके बदलावों को अनदेखा करना उसकी समस्या को बढ़ा सकता है। शरीरिक और मानसिक बदलावों के बीच आपको भी उससे अपना रिश्ता बदल लेना है। माता-पिता के साथ ही आपको उसका दोस्त भी बनना होगा। उसे समझिए, जानने की कोशिश कीजिए। उससे सवाल कीजिए ताकि आप उसकी समस्या की गंभीरता को समझ पाएं। बच्चे के साथ अपने अनुभव साझा कीजिए ताकि वह समस्या में अपने साथ हो रहे शारीरिक बदलावों में उलझने की जगह उससे उबरने का प्रयास कर सके।
समय रहते कीजिए तैयारी
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