हाथ की लकीरें
Mukta|August 2022
मांबाप के विरोध के बावजूद अलगअलग जाति के कपिल और कायरा ने कोर्ट में शादी की थी पर शादी के बाद उन के जीवन में एक अनहोनी ने दस्तक दे दी. क्या थी वह अनहोनी?
सतीश सिंह
हाथ की लकीरें

कायरा लखनऊ के हजरतगंज में अपने पुश्तैनी मकान में रहती थी. संयुक्त परिवार था उस का. दादादादी, चाचाचाची, चचेरे भाईबहन सभी साथ में रहते थे. भीड़भाड़ वाले इलाके में था उस का घर.

ठंड का मौसम था, इसलिए छत पर सुबह से ही धूप में बैठी थी कायरा, लेकिन उस की निगाहें अखबार की दुकान पर जमी हुई थीं क्योंकि आज एक सरकारी बैंक में परिवीक्षाधीन अधिकारी पद के लिए दिए गए साक्षात्कार का परिणाम आने वाला था. अखबार बेचने वाले की दुकान घर के ठीक सामने थी. रोजगार समाचार अमूमन दोपहर में आता था, लेकिन वह सुबह से ही बेचैन थी. उसे लग रहा था कि आज जल्दी रोजगार समाचार आ जाएगा. बैंक के मानव संसाधन विभाग (एचआर) वालों ने कहा था कि आज के रोजगार समाचार में रिजल्ट जरूर आ जाएगा.

तकरीबन एक बजे अखबार वाले भैया को रोजगार समाचार ले कर आते हुए देख कर वह भागते हुए नीचे पहुंची और बिना पैसे दिए ही रोजगार समाचार के पन्ने पलटने लगी. उस के चेहरे पर तनाव साफतौर पर दृष्टिगोचर हो रहा था. पहली बार में उसे अपना रोल नंबर नहीं दिखा तो वह घबरा गई लेकिन दोबारा हिम्मत कर के उस ने रोल नंबर देखना शुरू किया. इस बार उसे अपना रोल नंबर दिख गया. उस ने दसियों बार रोल नंबर मिलाया, तब उसे तसल्ली हुई. वह खुशी से पागल हो गई. खुश होना स्वाभाविक भी था, क्योंकि विगत 2 सालों में कई परीक्षाओं के साक्षात्कारों में वह असफल हो चुकी थी.

कायरा पूरे महल्ले में घूमघूम कर अपनी सफलता के बारे में बता रही थी. घर में पार्टी का माहौल बन गया था. छोटा भाई दौड़ कर चौक से मिठाई ले आया और कायरा ने खुद महल्ले में मिठाई बांटी.

चौथे दिन नियुक्तिपत्र भी आ गया. उसे भोपाल के होशंगाबाद रोड स्थित स्थानीय प्रधान कार्यालय में योगदान देना था. सही समय पर कायरा कार्यालय पहुंच गई. वहां पहले से एक और उम्मीदवार बैंक में योगदान देने के लिए बैठा था. बातचीत के क्रम में पता चला कि उस का नाम कपिल है. वह भोपाल के ईदगाह हिल्स का रहने वाला है. चूंकि कपिल लोकल था, इसलिए कायरा कपिल से रहने व खाने की व्यवस्था के बारे में बात करने लगी.

Denne historien er fra August 2022-utgaven av Mukta.

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