हायर एजुकेशन - सरकार भी ले टैंशन
Mukta|Sep 2023
भारत में सरकारी उच्च शिक्षण संस्थानों में सीटों की कमी के चलते मजबूरन स्टूडैंट्स प्राइवेट संस्थानों का रुख कर रहे हैं. इस दोहरी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षा व्यापार बन कर रह गई है. ऐसे में छात्र या तो पढ़ाई छोड़ रहे हैं या उन्हें महंगी शिक्षा लेने को मजबूर होना पड़ रहा है. इस से छात्रों पर बोझ बढ़ने के साथ उन में हताशा बढ़ रही है.
चंद्रकला
हायर एजुकेशन - सरकार भी ले टैंशन

स्कूल के बाद एक सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए एक नवयुवा विश्वविद्यालयों की तरफ देखता है, जहां वह अपने इंटरैस्ट के अनुसार आगे उच्च शिक्षा हासिल कर सकता है. देश में लगभग हर साल लाखों स्टूडैंट्स 12वीं के एग्जाम के बाद विश्वविद्यालयों के लिए आवेदन की कतार में खड़े हो जाते हैं जिस में वे सफल होंगे, इस की संभावना 30 फीसदी से भी कम होती है.

इस साल 2023 में करीब सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा स्टूडेंट्स ने 12वीं का एग्जाम दिया, जिस में 80-90 प्रतिशत से भी अधिक पास हो गए. जाहिर है, इस के बाद ये सभी पास होने वाले छात्र देश के बड़े बड़े कालेजों में एडमिशन की दौड़ में शामिल हो जाते हैं. इस दौड़ में केवल वही छात्र जीत पाते हैं जिन की शिक्षा किसी सरकारी स्कूल से न हो कर बड़े प्राइवेट स्कूल से हुई हो क्योंकि उन की योग्यता अधिक होती है.

एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला स्टूडेंट संसाधनों के अभाव व अध्यापक की कम रुचि के कारण उतना योग्य नहीं बन पाता जितना कि एक प्राइवेट स्कूल का स्टू में वह अकसर एडमिशन की दौड़ में पीछे रह जाता है.

भारत लगभग 1,000 विश्वविद्यालयों और 40,000 कालेजों के साथ दुनिया की सब से बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली होने का दावा करता है पर वास्तविकता यह है कि इतनी बड़ी चेन होते हुए भी अधिकतर छात्र उन कालेजों या कोर्सों में एडमिशन नहीं ले पाते जिन वे लेना चाहते हैं और उन्हें अपने भविष्य व सपनों के साथ समझौता करना पड़ता है.

एनईपी 2020 (नई शिक्षा नीति) कहती है, हमें अपनी जीडीपी का कम से कम 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करना चाहिए जबकि अभी सरकार शिक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 2.9 प्रतिशत ही खर्च कर रही है. जबकि, काफी समय से शिक्षाविदों की मांग रही है कि शिक्षा बजट को 10 प्रतिशत तक बढ़ाए जाने की जरूरत है.

सरकार का कहना है शिक्षा का खर्च 2013 की तुलना में दोगुना कर दिया गया है लेकिन मंदिरों और सरकारी इमारतों पर किया गया खर्च जिस तरह दिखाई देता है, वह खर्च शिक्षा संस्थानों में दिखाई नहीं देता. आज भी 12वीं पास करने वाला स्टूडैंट असमंजस की स्थिति में यहांवहां भटकता रहता है जिन में से गरीब निम्न क्लास स्टूडैंट एडमिशन की उम्मीदें तक छोड़ देता है और कई मामलों में तो पढ़ाई तक.

Denne historien er fra Sep 2023-utgaven av Mukta.

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