एक समय था जब स्टूडैंट मूवमैंट अच्छीखासी संख्या में हुआ करते थे. इमरजैंसी में विरोध के बाद जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स ने इमरजैंसी के खिलाफ मूवमैंट किया. इस मूवमैंट ने इतना बड़ा रूप ले लिया था कि इंदिरा गांधी तक को स्टूडेंट्स के प्रेसिडेंट तक से मिलना पड़ गया था क्योंकि उस समय स्टूडैंट प्रैजिडेंट की एक वैल्यू होती थी.
दरअसल स्टूडेंट सिर्फ एक स्टूडेंट नहीं है वह एक नागरिक है और देश की रीढ़ भी है. अगर उसे अपनी यूनिवर्सिटी में या शिक्षा के क्षेत्र में या फिर देश में कुछ भी गड़बड़ होते दिख रहा है या उसे लगता है कि ये गलत हो रहा है इसे बदला जाना चाहिए तो इस पर स्टूडेंट्स को सवाल उठाने का पूरा अधिकार होता है.
स्टूडेंट अगर किसी यूनिवर्सिटी कैंपस में पढ़ाई कर रहा है तो इस का मतलब यह नहीं है कि वह वहां सिर्फ पढ़ाई ही करेगा. अगर उसे लग रहा है कि इस यूनिवर्सिटी में किसी स्टूडेंट के साथ कुछ गलत हो रहा है या वहां कुछ ऐसा हो रहा है जो स्टूडैंट्स के फेवर में नहीं है तो उन्हें आवाज उठाने का पूरा हक है. अपने इसी हक का इस्तेमाल करते हुए पहले खूब स्टूडेंट मूवमैंट हुआ करते थे.
2012 में निर्भया केस हुआ. उस निर्भया केस को पूरे भारत में इतना स्पार्क मिला. उस का एक बड़ा कारण यह था कि दिल्ली के अलगअलग यूनिवर्सिटी के जो स्टूडैंट थे वे बाहर निकले और उन्होंने मूवमैंट किया, आवाज उठाई. उस में जामिया, अंबेडकर यूनिवर्सिटी, आईपी यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट भी शामिल थे. वे सभी सड़कों पर आए और उन्होंने अपनी आवाज उठाई. इस तरह स्टूडेंट एक नागरिक भी है और वह अपना इस तरह फर्ज भी अदा करता है.
बहुत पुराना है स्टूडेंट मूवमैंट का इतिहास
जब भी स्टूडैंट शक्ति ने किसी बड़े मूवमैंट को जन्म दिया या किसी घटना विशेष पर तीखा रुख इख्तियार किया तो देश और समाज में सकारात्मक परिवर्तन हुए. देश ही नहीं दुनिया में भी स्टूडैंट राजनीति का आयाम यही रहा. भारत में स्टूडैंट राजनीति का इतिहास करीब 170 साल पुराना है. 1848 में दादा भाई नौरोजी ने 'द स्टूडैंट साइंटिफिक एंड हिस्टोरिक सोसाइटी' की स्थापना की.
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