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मोदी के अश्वमेधी घोड़े के सारथी अमित शाह
Gambhir Samachar
|November 01, 2022
सियासत और शतरंज हर किसी को समझ में नहीं आता, दोनों में काफी समानताएं हैं. जैसे शतरंज में सैनिक से लेकर हाथी, घोड़ा, वजीर और राजा समेत कई किरदार होते हैं वैसे ही सियासत में भी कई किरदार होते हैं. कहते हैं सियासत करना शतरंज खेलने से ज्यादा मुश्किल होता है और उतना ही खतरनाक देश के मौजूदा गृहमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता अमित शाह शतरंज के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं. जाहिर है शह और मात के खेल का उनका तजुर्बा सियासत में भी दिख जाता है. उनकी सियासत कैसी है, ये देश की तमाम विपक्षी पार्टियों से बेहतर कोई नहीं बता सकता. जब से केन्द्र की राजनीति में आए हैं तब से लगता है समूचे विपक्ष ने या तो समाधी ले ली है या फिर घर बैठे सत्ता में आने का इंतजार कर रही है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी का क्या हाल है ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है और इन सब के पीछे कौन है ये भी किसी को बताने वाली बात नही है.

सन् 1964 में मुंबई के एक संपन्न गुजराती परिवार में जन्मे अमित शाह, देश की राजनीति में आज इसलिए भी सफल हैं क्योंकि उनकी शुरुआती जिंदगी गांव में बीती थी. वो गांव को समझते शायद इसलिए देश की राजनीति में भाजपा लगातार सफल होती जा रही है. कभी बीजेपी के बारे में कहा जाता था कि ये तो शहरी पार्टी है. आज भारत का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा हो जहां कमल नहीं खिला है, इसमें अमित शाह की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता. बहुत कम लोगों को मालूम है कि अमित शाह की मां कुसुम बा गांधीवादी थीं. बेटे को विरासत में लाइब्रेरी दे गईं जिसमें कुरान, बाइबिल समेत हजारों किताबें रखी हैं. सोलह साल की उम्र तक वे अपने गांव, मान्सा में ही रहे और वहीं से स्कूली शिक्षा प्राप्त की. अमित शाह का पैतृक घर हेरिटेज बिल्डिंग में शुमार है. बाद में अहमदाबाद आ गए और कम उम्र में आरएसएस से जुड़ाव हो गया. 1982 में जब शाह कॉलेज में थे तो पहली से बार उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से हुई, 1983 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इसके बाद कांरवा बढ़ता चला गया. आज एक देश का प्रधानमंत्री तो दूसरा देश का गृहमंत्री है. गृह मंत्री रहते अमित शाह के तीन तलाक, आर्टिकल 370 और एनआरसी पर लिए फैसले को ऐतिहासिक कहा जाए तो इसमें कुछ भी गलत नहीं.
बात तब की है जब केशुभाई पटेल गुजरात के सीएम हुआ करते थे. तब नरेन्द्र मोदी को सुपर सीएम कहा जाता था. ये बात केशुभाई को परेशान करने लगी थी. उन्होंने मोदी को गुजरात से बाहर दिल्ली भिजवा दिया. पीएम मोदी 7 साल तक गुजरात से बाहर रहे थे. अमित शाह तब केशुभाई की सरकार में मंत्री थे लेकिन इस दौरान वहां की सारी बातें मोदी तक पहुंचाया करते थे. केशुभाई से ज्यादा उनकी वफादारी पीएम मोदी के लिए थी.
Denne historien er fra November 01, 2022-utgaven av Gambhir Samachar.
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