नोएडा की रहने वाली 49 वर्षीया उमा शर्मा के लिए घर के बाहर गली के छह कुत्तों को रोटी खिलाना, चार साल पहले पति की मौत के सदमे से उबरने का एक जरिया था. उन कुत्तों का प्यार और वफादारी का साथ न होता तो शायद वे डिप्रेशन का शिकार हो जातीं. लेकिन उनकी हाउसिंग सोसाइटी के दूसरे लोगों में कुत्तों के प्रति वैसा लगाव न था. साल भर पहले जब वे शहर से बाहर थीं, सोसाइटी के लोगों ने उनमें से चार कुत्तों को उठाया और कहीं और पहुंचा दिया. शर्मा कहती हैं, “इससे मेरा दिल टूट गया. इससे उबरने को उन्हें इलाज कराना पड़ा. कुत्तों ने कभी किसी को काटा या दौड़ाया नहीं था. उन्हें टीके लगे थे. पर समाज के कुछ सदस्यों के पूर्वाग्रहों की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी." कुत्ते अपना एक इलाका बनाकर रखते हैं और नए इलाके में पहुंचा देने पर अक्सर उनकी मृत्यु हो जाती है. वहां पहले से मौजूद कुत्ते बाहरी की घुसपैठ को आसानी से नहीं स्वीकारते.
कुत्तों को रोटी खिलाना पशु प्रेमियों और उनके विरोधियों के बीच विवाद की पुरानी वजह रही है. पूरे भारत में आवारा कुत्तों के हमलों की घटनाएं बढ़ने से यह विवाद और तेज हो गया है, जिससे लोगों में एक तरह की दहशत फैल गई है. अक्तूबर में ओडिशा के बोलांगिर जिले के पटनागढ़ ब्लॉक में तीन साल की एक बच्ची को कुत्तों ने मार डाला. सितंबर में केरल के कोझिकोड जिले में एक 12 वर्षीय लड़के पर आवारा कुत्ते ने उसके घर के सामने हमला किया. इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. अप्रैल में आवारा कुत्तों के एक झुंड ने लखनऊ के मुसाहबगंज इलाके में सात और पांच साल के दो बच्चों पर हमला किया, जिसमें एक की मौत हो गई.
शर्मा ने सोसाइटी के सदस्यों के खिलाफ क्रूरता का मामला दर्ज कराया है. वे कहती हैं, 'कानूनन उन लोगों को बाकी दो कुत्तों को छूने की मनाही है." उन्होंने बताया कि कई बच्चों और सोसाइटी के गार्डों के लिए भी वे कुत्ते दोस्त सरीखे थे. शर्मा कहती हैं, “जब तक वे किसी को नुक्सान नहीं पहुंचा रहे, हम उनसे छुटकारा पाने की सोचें ही क्यों?"
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