आर्थिक उदारीकरण (1991) के बाद भारत में मैनेजमेंट की पढ़ाई में तेज रफ्तार क्रांति दिखी, जिससे देश में वैश्विक कॉर्पोरेट संस्कृति के लिए दरवाजा खुला इस प्रक्रिया में निजी उद्योग बढ़ा तो इससे मैनेजमेंट स्नातकों की मांग में भी तेजी आई. लिहाजा, मैनेजमेंट कोर्स मुहैया कराने वाले सरकारी और निजी संस्थान देश में बड़ी संख्या में उभरे. ये दुनियाभर में प्रतिष्ठित भारतीय प्रबंधन संस्थानों (आइआइएम) के अतिरिक्त थे. आज हमारे यहां 4,000 से अधिक प्रबंधन स्कूल हैं, जिनमें विश्वविद्यालयों के प्रबंधन विभाग भी शामिल हैं. इन स्कूलों में हर शैक्षणिक वर्ष में लगभग 3,00,000 विद्यार्थी दाखिला लेते हैं.
फिर भी, प्रबंधन स्कूलों के तेजी से बढ़ने से शिक्षा की गुणवत्ता में व्यापक सुधार नहीं हुआ है, क्योंकि इन स्कूलों में बड़ी संख्या में इन्फ्रास्ट्रक्चर और अच्छे प्रशिक्षित संकाय सदस्यों का अभाव है. इन स्कूलों की ये कमियां शिक्षा और उद्योग के बीच गहरी खाई पैदा करती हैं क्योंकि उनके कोर्स और प्रशिक्षण असल में उद्योग की जरूरतों के अनुरूप नहीं होते. लिहाजा, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि व्हीबॉक्स की ओर से प्रकाशित इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2023 में पाया गया है कि देश में 40 फीसद मैनेजमेंट स्नातक रोजगार के योग्य नहीं हैं.
इस मायने में प्रबंधन संस्थानों का स्वतंत्र मूल्यांकन यह जांचने के लिए जरूरी हो जाता है कि क्या वे उभरते कारोबारी माहौल की नई आवश्यकताओं और चुनौतियों के साथ जुड़े हुए हैं. इंडिया टुडे ग्रुप-एमडीआरए बेस्ट बिजनेस स्कूल सर्वेक्षण बिल्कुल यही करता है. महंगी होती बिजनेस पढ़ाई और मौजूदा हुनर के रोजगार के लिए घटती जगह के मद्देनजर छात्रों को यह पुख्ता जानकारी होनी चाहिए कि किस संस्थान के पास सबसे अच्छा कोर्स, फैकल्टी और उद्योग से जुड़ाव है, जो उन्हें उभरते उद्योग माहौल के लिए तैयार कर सकें. शीर्ष बी-स्कूलों में बाकियों से फर्क यही है कि वे भविष्य की चुनौतियों के बारे में सतर्क रहते हैं और उनके अनुकूल कोर्स, फैकल्टी और इन्फ्रास्ट्रक्चर में बदलाव करने की तत्परता दिखाते हैं.
Denne historien er fra November 15, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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