अपने नाम से ही सिनेमा के बने बनाए फरमे तोड़ने की मुनादी करती हालिया रिलीज हुई मराठी फिल्म है आत्मपॅम्फलेट. आत्मचरित्र या आत्मकथा जैसी किताबी नहीं, जिसमें स्मृति - घटनाएंशिक्षा सब कुछ हो. बल्कि स्वयं पर एक पम्फलेट. एक इश्तेहारी पर्चा जो सीखने-सिखाने के बोझ से तो आजाद है ही, साथ में उसे सलाहियत है 'कहने में सिर्फ कहने' की. न कोई छिपा हुआ अर्थ, न ढंका हुआ विमर्श. एक सदी के अंत पर मुस्कराता हुआ खालिस व्यंग्य, जो अपने पहले ही फ्रेम में साफ कह देता है कि "सर्व-सामान्य की आत्मकथा कहने का कोई तुक नहीं, क्योंकि इसे कोई क्यों सुनेगा?"
नब्बे के दशक में स्कूल की पढ़ाई करते आशिष बेंडे के गिर्द इस फिल्म की कहानी बुनी गई है. आशिष को उम्मीद है कि एक दिन वे अपने स्कूल में पढ़ने वाली सृष्टि से अपना प्यार जाहिर कर सकेगा. इश्क में दुनिया रोड़े अटकाती है, ऐसी कहानियां इन बच्चों ने सुनी भर ही हैं. इसलिए आशिष और उसके प्यार के बीच जमाने भर की दीवार है जिसे लांघने में मदद करना आशिष के दोस्तों को अपना फर्ज मालूम देता है. एकबारगी यह फिल्म स्कूली प्यार का मासूम-सा बयान लग सकती है लेकिन आशिष से जुड़ी हर जरूरी घटना असल में पूरे देश के इतिहास से जुड़ी जरूरी घटनाओं के ठीक साथ घटती है. एक प्यारी-सी कहानी से ऊंच-नीच, गैर-बराबरी और जिंदगी के कई सरोकारों को टटोलती इस फिल्म के निर्देशक हैं आशिष अविनाश बेंडे.
Denne historien er fra December 06, 2023-utgaven av India Today Hindi.
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लीक से हटकर
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यूबी की किंगफिशर ने 1990 के दशक में बीयर को कूल बना दिया. तब से घरेलू अल्कोहल उद्योग के जोशीले दिन कभी थमे नहीं
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घर हो या कोई भी नुक्कड़-चौराहा, हर तरफ फिल्मी गानों की बादशाहत कायम थी. उसके अलावा जैसे कुछ सुनाई ही नहीं पड़ता था. तभी भारतीय ब्रिटिश गायकसंगीतकार बिट्टू ने हमें नाजिया से रू-ब-रू कराया, जिनकी आवाज ने भारतीयों को दीवाना बना दिया. सच में लोग डिस्को के दीवाने हो गए. इसके साथ एक पूरी शैली ने जन्म लिया
जिस लीग ने बनाई नई लीक
लगातार पड़ते छक्के, स्टैंड में बॉलीवुड सितारों और नामी कॉर्पोरेट हस्तियों और सत्ता- रसूखदारों की चकाचौंध, खूबसूरत बालाओं के दुमके - आइपीएल ने भद्रलोक के इस खेल को रेव पार्टी सरीखा बना डाला, जहां हर किसी की चांदी ही चांदी है
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विश्वनाथन आनंद अचानक ही सामने आए और दुनिया फतह कर ली. गुकेश के साथ 2024 में भारत को मिली उपलब्धि उसी विरासत का हिस्सा है
जब स्वच्छता बन गया एक आंदोलन
सामूहिक शर्म से लेकर राष्ट्रीय गौरव तक, खुले में शौच का चलन खत्म करने के देश के सफर में मजबूत सियासी इच्छाशक्ति और नेतृत्व के साथ-साथ समुदाय, कॉर्पोरेट और सेलेब्रिटी के मिलकर काम करने की दास्तान शामिल
जब मौन बन गया उद्घोष
एक पनबिजली परियोजना के विरोध में पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और पत्रकारों ने मिलकर जन जागरुकता अभियान चलाया और भारत के अब बचीखुची उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक, केरल की साइलेंट वैली को बचाने में कामयाब रहे।
बताने को मजबूर हुए बाबू
जमीनी स्तर पर संघर्ष से जन्मे इस ऐतिहासिक कानून ने भारत में लाखों लोगों के हाथों में सूचना का हथियार थमाकर गवर्नेस को न सिर्फ बदल दिया, बल्कि अधिकारों की जवाबदेही भी तय करने में बड़ी भूमिका निभाई