पिछले महीने रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात से भले सीमा पर तनाव में कमी का संकेत मिला हो, मगर भारत दोतरफा व्यापार संबंधों को लेकर सतर्क है. उसने इस साल चीन के आयात पर कई ऐंटी-डंपिंग शुल्क लगा दिए. भारत ने वहां से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर जरूरी नियंत्रण रखने का भी संकल्प लिया है. उसने यह रुख 2020 में लद्दाख के गलवान में सीमा पर हुए गतिरोध के बाद राष्ट्रीय हितों की रक्षा की खातिर अपनाया. पर, इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में चीन अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया और विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे में मोदी सरकार के सामने कठिन चुनौती आ गई है.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में, डंपिंग उसे कहा जाता है जब कोई देश या निर्माता किसी उत्पाद को आयात करने वाले देश में उसके घरेलू बाजार में सामान्य कीमत से कम पर उसे बेचता है. विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की व्यवस्था के तहत, अन्य देश आयातित वस्तुओं पर ये शुल्क तब लगा सकता है जब यह सिद्ध हो जाए कि उन सस्ते उत्पादों की बाढ़ से घरेलू उत्पादकों को 'नुक्सान' हो रहा है. भारत में घरेलू उद्योग वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत ऐंटी-डंपिंग एवं संबद्ध शुल्क महानिदेशालय में जांच का आवेदन कर सकते हैं. 2023 में भारत ने विदेश से आयात पर ऐसी 45 जांच शुरू की और 14 मामलों में शुल्क लगाया. उससे यह अमेरिका के बाद ऐंटी-डंपिंग उपायों का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता बन गया. इस साल जनवरी और सितंबर के बीच भारत ने 34 और जांच शुरू की. उनमें से 15 या 44 फीसद चीनी आयात को लेकर हैं.
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