लगभग आधी रात का वक्त. बेंगलूरू में लैंगिक कानून सलाहकार फर्म अनजेंडर की संस्थापक 39 वर्षीया पल्लवी पारीक जब सोने की तैयारी कर रही होती हैं तो उन्हें महसूस होता है कि उन्हें सैनेटरी नैपकिन की जरूरत है. वे अपना स्मार्टफोन उठाती हैं, क्विक कॉमर्स ऐप पर ऑर्डर दे देती हैं. 10 मिनट के भीतर डिलिवरी पहुंच जाती है. पल्लवी कहती हैं, "क्यू-कॉमर्स मेरे परिवार की रीढ़ है." वे ऐन वक्त की जरूरत और रोजमर्रा के किराने के सामान, बिना पर्चे की दवा और यहां तक कि उपहारों के लिए भी क्विक कॉमर्स ऐप पर निर्भर रहती हैं.
पल्लवी की कहानी महानगरों में समय की तंगी से जूझते उन परिवारों और पेशेवरों की झलक है जिन्होंने शहर के भारी ट्रैफिक और पार्किंग के झंझट को दरकिनार करते हुए अपना कीमती समय बचाने की तलाश में क्यू-कॉमर्स मार्केटप्लेस को अपना लिया है. ऐन वक्त और तुरंत खरीद के समाधान के रूप में जो चीज शुरू हुई, वह अब एक जरूरत में तब्दील हो गई है, जिसमें 10-15 मिनट के भीतर लगभग हर चीज मुहैया कराने की क्षमता है. इन ऑनलाइन मार्केटप्लेस से मिलने वाली सुविधाओं को पल्लवी कुछ इस तरह बयान करती हैं, "जैसे कोई आपके लिए दरवाजे पर खड़ा है."
Denne historien er fra December 25, 2025-utgaven av India Today Hindi.
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