हर साल सर्दियों में एक जाना-पहचाना किस्सा दोहराया जाता है जब वायु प्रदूषण की चादर आसमान पर छा जाती है. प्रदूषण फैलाने वालों पर शिकंजा कसते हुए सरकार सड़कों पर नुक्सानदेह गैस उत्सर्जित करते वाहनों की बढ़ती तादाद का सार्वजनिक तौर पर रोना रोती हैं.
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी कहते हैं, "यह खतरनाक समस्या है. देश में कार्बन डाइऑक्साइड का 40 फीसद उत्सर्जन ट्रांसपोर्ट सेक्टर से होता है. यह रोज बढ़ रहा है, यह फिक्र की बात है." इतनी ही फिक्र की बात शायद सरकार का वह बड़ा कदम-जिसमें एक करोड़ से ज्यादा पुराने और प्रदूषणकारी वाहनों को एक झटके में भारत की सड़कों से हटाने की और शायद इस सालाना समस्या के खिलाफ देश की लड़ाई को मजबूत बनाने की भी क्षमता है-कामयाबी की तरफ बढ़ने के लिए लड़खड़ाता दिख रहा है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पुराने वाहन नए के मुकाबले 10-12 गुना ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं.
हाल में सरकार ने अपना बहुचर्चित स्वैच्छिक वाहन बेड़ा आधुनिकीकरण कार्यक्रम या 'वाहन स्क्रैपिंग नीति' शुरू होने की तारीख व्यावसायिक वाहनों के लिए जून से बढ़ाकर अक्तूबर 2024 कर दी. वजह? नीति लागू होने के तीन साल बाद भी राज्य इसके लिए तैयार नहीं हैं.
नीति का मकसद
Denne historien er fra January 24, 2024-utgaven av India Today Hindi.
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