प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 मई को आजमगढ़ की निजामाबाद विधानसभा सीट के गंधुवई क्षेत्र में चुनावी रैली करके पूर्वी यूपी के जातिगत समीकरणों को साधने की कोशिश की. प्रधानमंत्री मोदी की यह रैली आजमगढ़ और लालगंज लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' और नीलम सोनकर के समर्थन में थी. लेकिन मोदी ने मंच पर यूपी में भाजपा के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान को प्रमुखता देकर पूर्वी यूपी में जातिगत समीकरणों को दुरुस्त करने की कोशिश की. ये समीकरण आजमगढ़ से सटी घोसी लोकसभा सीट पर कसौटी पर हैं. लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद भाजपा ने अपने गठबंधन की सबसे नई सहयोगी सुभासपा को पूर्वी यूपी की घोसी लोकसभा सीट सौंप दी, जिस पर ओम प्रकाश ने अपने बेटे अरविंद राजभर को उतारा है.
तमसा नदी के किनारे बसे पूर्वांचल के मऊ जिले की घोसी लोकसभा सीट कांग्रेस के विकास पुरुष कहे जाने वाले कल्पनाथ राय के नाते जानी जाती रही है. यह सीट राम मंदिर आंदोलन और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में भाजपा से दूर रही. इस सीट पर भाजपा ने जीत का स्वाद 2014 में चखा जब मोदी लहर में पार्टी के उम्मीदवार हरिनारायण राजभर विजयी हुए. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में वे सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार अतुल राय से हार गए. घोसी सीट को दोबारा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के झंडे तले लाने के लिए ओम प्रकाश राजभर अपने साथी दारा सिंह चौहान के साथ - एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं. इस सीट पर सुभासपा उम्मीदवार अरविंद का मुकाबला सपा उम्मीदवार राजीव राय और बसपा उम्मीदवार बालकृष्ण चौहान से है. यहां राजभर और लोनिया चौहान ओबीसी मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख है. इस तरह से घोसी लोकसभा सीट ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान की साख का इम्तिहान भी ले रही है.
Denne historien er fra June 05, 2024-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent ? Logg på
Denne historien er fra June 05, 2024-utgaven av India Today Hindi.
Start din 7-dagers gratis prøveperiode på Magzter GOLD for å få tilgang til tusenvis av utvalgte premiumhistorier og 9000+ magasiner og aviser.
Allerede abonnent? Logg på
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"