काला अक्षर क्रांति बराबर
India Today Hindi|August 28, 2024
भारत की शिक्षा प्रणाली की गंभीर खामियों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के जरिए दूर किया गया है. लेकिन वैश्विक मानक हासिल करने के लिए इसे सच्चे अर्थों में लागू करना जरुरी
कौशिक डेका
काला अक्षर क्रांति बराबर

भारत नालंदा और तक्षशिला की प्राचीन संस्थाओं के अतीत का जिक्र करते हुए अपनी शैक्षणिक उत्कृष्टता की ऊंची विरासत पर गर्व भा करता है. आज भारत वैश्विक शिक्षा क्षेत्र में बड़ी ताकत है. फिर भी वैश्विक शैक्षणिक नेतृत्व के शिखर पर पहुंचने के लिए भारत को ढेर सारी चुनौतियों से निबटने की जरूरत है. साथ ही चतुराई के साथ अपने सामर्थ्य का फायदा उठाना होगा. करीब 15 लाख स्कूलों, 40,000 से ज्यादा कॉलेजों और 1,000 से ज्यादा विश्वविद्यालयों वाले भारत का शिक्षा तंत्र करीब 30 करोड़ छात्रों की जरूरत पूरी करता है. इस तरह वह विश्व के सबसे बड़े शैक्षणिक तंत्र में से एक है.

हालांकि संख्या का यह लाभ गुणात्मक सफलता में नहीं बदल सका है. मसलन, भारत में प्राथमिक शिक्षा में जहां ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) 108 फीसद है, वहीं माध्यमिक शिक्षा में यह आंकड़ा गिरकर करीब 79 फीसद रह जाता है. इसके विपरीत पड़ोसी देश चीन में प्राथमिक शिक्षा के लिए जीईआर 100 फीसद पर बरकरार है और माध्यमिक शिक्षा के लिए 89 फीसद है जो छात्रों के शिक्षा में बने रहने का बेहतर प्रदर्शन है. फिनलैंड और दक्षिण कोरिया की मिसाल वाली शिक्षा प्रणाली में सभी स्कूल स्तरों पर जीईआर करीब 100 फीसद है.

और उच्च शिक्षा के लिए भारत का जीईआर निराशाजनक 27.1 फीसद पर घिसट रहा है. यह आंकड़ा चीन की तुलना में आधा और अमेरिका के शानदार 88 फीसद की तुलना में बेहद कमजोर है. कौशल प्रशिक्षण में भी हालत उतनी ही ज्यादा परेशान करने वाली है, जहां भारत के कार्यबल का महज 4 फीसद वोकेशनल शिक्षा हासिल करता है. यह चीन के 24 फीसद और जर्मनी तथा स्विट्जरलैंड के 75 फीसद से ज्यादा की तुलना में एकदम उलट है. इतना ही नहीं, भारतीय स्नातकों की रोजगार पाने की दर करीब 48.7 फीसद है जिससे संकेत मिलता है कि आधे से अधिक स्नातकों में रोजगार के बाजार के लायक कौशल की कमी है.

Denne historien er fra August 28, 2024-utgaven av India Today Hindi.

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