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कथनी-करनी के फर्क की पहेली

India Today Hindi

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April 02, 2025

भारत के लोग नागरिक दायित्वों से परिचित हैं लेकिन अक्सर इस पर अमल नहीं करते. यह सर्वेक्षण दरअसल चेतना और वास्तविक व्यवहार के बीच की फांक को जाहिर करता है

- दीपांकर गुप्ता

कथनी-करनी के फर्क की पहेली

स सर्वेक्षण से दो खास नतीजे निकलते हैं. एक, देश में ज्यादातर लोग जानते तो हैं कि क्या सही है मगर वे उस पर अमल नहीं करते. दूसरे, दक्षिण भारत के राज्य, खासकर केरल सामाजिक जागरूकता के मामले में उत्तर के मुकाबले मीलों आगे है. इसके कई पहलू हैं जो व्यापक दायरा तैयार करते हैं. इसमें साफ-सफाई तथा स्वच्छता, धार्मिक सहिष्णुता, तंबाकू पर प्रतिबंध, आस-पड़ोस की सुरक्षा और सबसे अहम स्त्री-पुरुष समानता की जागरूकता है.

ज्यादातर सर्वेक्षणों की तरह इस सर्वे के आंकड़ों के बीच छिपे संदेशों को पढ़ना होगा, अलबत्ता, यह भी ध्यान में रखना होगा कि ऐसे अध्ययनों की कई सीमाएं होती हैं. सबसे आम तो यही है कि सवाल कैसे पूछे जाते हैं और उसी से खेल का पता चल जाता है और जवाब वही आते हैं, जो मानो पहले से रटे-रटाए हैं. लोग भांप लेते हैं कि उनको तौला जा रहा है इसलिए वे ऐसे जवाब देते हैं जिससे वे अच्छे दिखें.

पहली नजर में कुछ नतीजे विवादास्पद लगते हैं, लेकिन गहरी नजर से देखा जाए, तो ये आंकड़े दिलचस्प कहानी बताते हैं. दो मिसालें ही काफी होंगी. इस सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक, दिल्ली में 99 फीसद का कहना है कि बिना टिकट यात्रा करना बुरी बात है, 86 फीसद लोग सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फैलाने को नापसंद करते हैं, लेकिन इन दोनों मुद्दों पर रोजमर्रा के अनुभव बिल्कुल अलग कहानी कहते हैं.

इसी तरह, 87 फीसद का मानना है कि बिजली के मीटर से छेड़छाड़ करना गलत है या 88 फीसद का कहना है कि सड़क पर या कहीं भी कोई गंभीर दुर्घटना दिखने में आए तो वे पुलिस या एम्बुलेंस को बुलाने के लिए ठहरेंगे. बेशक, ये आंकड़े संदिग्ध हैं लेकिन इन आंकड़ों से यह निकलकर आता है कि लोग जानते हैं कि गंदगी फैलाना या मीटर से छेड़छाड़ करना या बिना टिकट यात्रा करना गलत है. लेकिन फिर उनकी करनी उनकी कथनी जैसी क्यों नहीं है?

इसमें संदेह नहीं कि नागरिक शास्त्र के व्यापक सबक से सभी लोग बखूबी वाकिफ हैं. यहां तक कि जलवायु परिवर्तन से भी आम लोग (देश भर में 69 फीसद तक) अच्छी तरह वाकिफ हैं, जिसे अक्सर अभिजात वर्ग की फिक्र मान लिया जाता है. हम अगर इन आंकड़ों को ज्यों का त्यों मान लें और लोगों के कहे को ही पत्थर की लकीर मान बैठें तो हम छले जाएंगे, धोखा खा जाएंगे और बड़ी सचाई से दूर रहेंगे, जो कहीं अधिक सबक देती है.

India Today Hindi

Denne historien er fra April 02, 2025-utgaven av India Today Hindi.

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