ज्ञा पूर्व में एस.एन. सेंडरसन एंड कंपनी को बदारी लाइम स्टोन माइन (ओपन तव्य है कि सिआ (राज्य स्तरीय पर्यावरण समाधान निर्धारण प्राधिकरण) ने में कॉस्ट सेमी मैकेनाइज्ड प्रोसेस) जिसकी उत्पादन क्षमता 50 हजार टन प्रतिवर्ष है को 25 मार्च 2009 में 5.82 हेक्टेयर खदान की पर्यावरण स्वीकृति प्रदान की थी। इस खदान को बाद में एसीसी सीमेंट ने अपने नाम पर करवाया। इस खदान की जल तथा वायु अधिनियम की सम्मतियां ए.सी. सेण्डरसन के नाम पर थी, मगर जैसा कि पर्यावरण मंत्रालय ने बताया था, इस खदान में लाइम स्टोन की खुदाई एसीसी कंपनी द्वारा की गई। एसीसी कंपनी ने वर्ष 2009 से 2018 तक की अवधि का खनन कार्य बिना वैध पर्यावरणीय स्वीकृति के किया गया साथ ही उक्त अवधि के अनुपालन प्रतिवेदन भी संबंधित विभाग को नहीं सौंपे। बिना पर्यावरणीय स्वीकृति के खनन कार्य को सिया ने गलत माना तथा 16 अगस्त 2021 को एसीसी को हस्तांतरित पर्यावरणीय स्वीकृति पर रोक लगा दी और बाद में 19 दिसंबर 2021 को एसीसी के उक्त स्वीकृति रिवोक कर दी गई।
आरटीआई से उजागर हुआ था मामला
गौरतलब है कि ये मामला तब उजागर हुआ जब आरटीआई कार्यकर्ता ने विभिन्न सीमेंट कंपनियों की पर्यावरण स्वीकृति के अनुपालन प्रतिवेदन की छै: माही रिपोर्ट के दस्तावेज पर्यावरण मंत्रालय मप्र भोपाल से मांगे। साथ ही मप्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल भोपाल से एसएन सैण्डरसन तथा एसीसी के मध्य लीज ट्रांसफर के दस्तावेज लिए। सैकड़ों की संख्या में प्राप्त किए गए प्रमाणित दस्तावेजों से जो तथ्य सामने आए वो चौंकाने वाले थे। दरअसल, जिला कटनी में मौजूद बड़ारी खदान की लीज ट्रांसफर का अनुबंध 23 दिसंबर 2008 को हुआ। ये लीज़ ट्राँसफर एसीसी के पक्ष में की गई थी। विभिन्न जांच तथा निरीक्षण के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट दि. 14 जून 2019 में बताया कि वर्ष 2009 में एसएन सैण्डरसन को उक्त खदान की जल तथा वायु सम्मतियां प्रदान की गई थी मगर एसीसी सीमेंट द्वारा वर्ष 2018 तक (यानी जब तक पर्यावरण स्वीकृति एसीसी को नहीं दी गई) एसीसी ने बिना वैध पर्यावरण स्वीकृति के खनन कार्य किया और यहां तक नियमानुसार पर्यावरणीय स्वीकृति की अनुपालन प्रतिवेदन नियमित रूप से जमा नहीं किए।
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