डेवेलपर्स के लिए कंप्लीशन सर्टिफिकेट की अहमियतः एक कंप्लीशन सर्टिफिकेट में इमारत के बारे में सभी जानकारियां लिखी होती हैं जैसे स्थान, भूमि की पहचान, डेवलपर/मालिक के बारे में विवरण, इमारत की ऊंचाई और इस्तेमाल की गई सामग्री की क्वॉलिटी. इसमें यह भी लिखा होता है कि प्रोजेक्ट म्युनिसिपल कॉरपोरेशन द्वारा तय किए गए नियम और मानकों के मुताबिक बनाया गया है, जिसमें सड़क से दूरी, पड़ोस की इमारतों से दूरी भी शामिल है. कई राज्यों में प्रॉपर्टी के लिए बिजली और पानी का कनेक्शन लेने के लिए कंप्लीशन सर्टिफिकेट बेहद जरूरी है. 22 अक्टूबर 2020 को मद्रास हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि कंप्लीशन सर्टिफिकेट की गैर-मौजूदगी में तमिलनाडु के हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को बिजली नहीं मिलेगी. हाई कोर्ट का यह आदेश तमिलनाडु जनरेशन एंड डिस्ट्रिब्यूशन कॉरपोरेशन (अहवश्वष्ठष्टह) के 6 अक्टूबर 2020 को दिए एक ऑर्डर पर आया था, जिसमें बिल्डर्स के लिए बिजली की सप्लाई हासिल करने के लिए कंप्लीशन सर्टिफिकेट की जरूरत खत्म कर दी गई थी.
कई अन्य जानकारियों के अलावा कंप्लीशन सर्टिफिकेट में क्या लिखा होता है:
■ भूमि की जानकारी
■ बिल्डिंग प्लान की हर जानकारी
■ बिल्डर की सारी जानकारी
■ बिल्डिंग की मंजूर की गई ऊंचाई
■ प्रोजेक्ट की लोकेशन और आसपास की इमारतों से उसकी दूरी
संक्षेप में कहें तो, कंप्लीशन सर्टिफिकेट संबंधित अथॉरिटी को यह सुनिश्चित करता है कि कंस्ट्रक्शन शुरू होने से पहले प्रॉपर्टी बिल्डिंग प्लान की सारी जरूरतों को पूरा करती है. यह खरीदारों को भी सुनिश्चित करता है कि प्रॉपर्टी रहने लायक है और उसमें बिजली और पानी की नियमित सप्लाई होगी. अगर कुछ काम होना बाकी है और बिल्डर को घर खरीदारों को बिल्डिंग/अपार्टमेंट सौंपना है तो उसे प्रोविजनल कंप्लीशन सर्टिफिकेट हासिल करना होगा. हालांकि यह सर्टिफिकेट 6 महीने तक वैध है और कंस्ट्रक्शन पूरा होने के बाद बिल्डर को फाइनल सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई करना पड़ेगा.
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