तेजस्वी का "तेज" क्या राष्ट्रीय राजनीति में युवा "चेतना को चैतन्य" कर नेतृत्व करेगा? - तेजस्वी का तहलका
Open Eye News|February 2024
सामने प्रत्यक्ष दिख रही निश्चित हार की मानसिकता से उबर कर, उपर उठकर और पिताजी की दाग नुमा छवि के वटवृक्ष के नीचे चलने के बावजूद उक्त घेरे (च व्यूह) से निष्कलंक बाहर निकल कर आ जाना, एक नई युवा राष्ट्रीय राजनीति को इंगित करता है कि तेजस्वी "उथले पानी की मछली नहीं है"। फिर "सुशासन बाबू" की छवि लिए राष्ट्रीय राजनीति के स्थापित क्षितिज राजनीतिक अनुभव में अपने से कई गुना बड़े, उम्र दराज, पांच बार की जीत, परन्तु कभी भी पूर्ण बहुमत प्राप्त न करने के बावजूद 17 साल में नौंवी बार बने ऐसे बिहार के ऐसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सत्ता को चुनौती देते हुए, विधानसभा में अपने 'तेज' से तेजस्वी ने सबको 'चमका' दिया। जिस तत्परता, कौशल व शालीनता के साथ "अपशब्दों" (जो आज की राजनीति का अंलकारित महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है), का प्रयोग किए बिना विधानसभा में अपनी बात रख कर "राजा दशरथ", "माता कैकयी" का उल्लेख कर सामने वाले की बोलती बंद कर उन्हें भौंचक्का कर देना, तेजस्वी यादव का यह एक नया "एंग्री मैन" का रूप है।
राजीव खंडेलवाल
तेजस्वी का "तेज" क्या राष्ट्रीय राजनीति में युवा "चेतना को चैतन्य" कर नेतृत्व करेगा? - तेजस्वी का तहलका

"तेजस्वी" कहीं भारतीय राजनीति में सशक्त युवाओं के पदार्पण के "पर्यायवाची" तो नहीं होते जा रहे हैं? "भारतीय युवा मोर्चा" भाजपा का युवा संगठन है, जिसके अध्यक्ष नवम्बर 2020 से कर्नाटक के "तेजस्वी" सूर्या एल. एस. है, जो "सूर्य" के समान चमक रहे हैं और तेजस्वी नाम को जिसका अर्थ चमकदार, उर्जावान, प्रतिभाशाली है, अपने कार्य से सफल सिद्ध कर रहे है। वे मात्र वर्ष 2019 में 28 वर्ष की उम्र में ही बंगलौर दक्षिण से संसद के लिए चुने गए। इसी प्रकार "लालू के लाल" तेजस्वी प्रसाद यादव, क्रिकेटर से राजनेता बने, वर्ष 2015 में मात्र 26 वर्ष की उम्र में विधायक के लिए चुनकर उप-मुख्यमंत्री बने। "चारा कांड" के सजायाफ्ता उनके पिताजी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री, लालू प्रसाद यादव की "छत्र छाया" नहीं, बल्कि गहन काली छाया के साथ मात्र नौंवी पास की पढ़ाई की "डिग्री" लिए तेजस्वी यादव है। उनकी माताजी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी सहित तेजस्वी पर भी कई मुकदमे दर्ज हैं। "यानी कि पूरा का पूरा थान ही डैमेज है।" उक्त काली पृष्ठभूमि से होने के बावजूद और विधानसभा में सत्ता पक्ष की विश्वास मत पर स्पष्ट दिख रही जीत की स्थिति को अर्थात स्वयं की हार की स्थिति को मतदान के पूर्व ही भाषण के समय ही स्वीकार कर लिया था जैसा कि बाद में मतदान में भाग न लेकर सदन से वॉकआउट कर दिया था। ऐसी विपरीत स्थिति में भी तेजस्वी का लगभग 40 मिनट का जिस तरह का जोरदार भाषण विधानसभा में विश्वास मत पर चर्चा के दौरान हुआ, उससे वे इस समय देश की समस्त मीडिया से लेकर आम जनों, बुद्धिजीवियों में चर्चित होकर राजनीति में बेहद प्रभावी होकर चमक लेकर एक प्रखर वक्ता के रूप में उभरे हैं। तेजस्वी का यह भाषण अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिरने पर संसद में दिये गये भाषण की याद दिलाते हुए उनके व्यक्तित्व को एक नया अवतार प्रदान करता है व राष्ट्रीय राजनीति में उनके पिताजी से भी ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान दिला सकता है, ऐसा कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। तेजस्वी के अपने समकालीन कई युवा नेताओं (राहुल...?) के बारे में यह कहा जा सकता है कि "जो उगता हुआ नहीं तपा तो डूबता हुआ क्या तपेगा"?

Denne historien er fra February 2024-utgaven av Open Eye News.

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